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महाका सिंह विरहाउ पज्जुषणचरित
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तहि भरहे होएवि एहु इत्थु संपत्तउ पुणु भणइ णरणाहु इउ घडइ किम जुत्तु। भरहस्स तणयस्स(4) मणुयस्स आगमणुता कहइ पुणु देउ णिसुणेहि एम' वणु। णामेण गारोत्ति एहु वंभ-वयधारि। दिव्व-तणु सुद्ध मणु महि भवणु णहचारि। णिउ भण. पुणु केण कज्जेण एहु आउ जिणु कह. ("तहिं अद्धचक्की बि जो राउ। महुमहणु तहो परिणि रूविणिहि जो जाउ तेणत्थु कज्जेण पुछणहु एहु आउ।।
सो णियहु केणावि हरिऊण जा सुद्धि णिसुणेवि इह अम्ह पासम्मे सा बुद्धि ।। धत्ता- ते चक्केसरु चवइ कहहु केण सो हरियउ।। कहिं अछउ तणउँ महु णियमणे अच्चरियउ।। 62।।
(13) वत्थु-छंद... ताम तिहुअण-सामि दज्जरइ ।
चक्केसर पोम सुणि जसु तसेइ सुरु-असुरु-माणउँ । किक्किंध-मलयहँ वसइ धूमकेउ पामेण दाणउँ।। तेण रूविणि-सुउ हरिवि णिउ सो पज्जुण्णु कुमारु । पुटव-वइरु संभरेवि मणे किर विरइय तहो मारु।। छ ।।
दिया—कि "इस वचन को सुनो, – इस ब्रह्मव्रतधारी, दिव्यशरीरी, शुद्धमन, महीभ्रमणकारी, नभचारी प्राणी का नाम नारद है।" पुन; राजा ने पूछा- किस कारण से (वह) यहाँ आया है? तब जिनेन्द्र ने उत्तर दिया कि वहाँ भरतक्षेत्र में जो अर्धचक्री राजा मधुमथन (कृष्ण) है, उसकी गृहिणी रूपिणी के शिशु के विषय में पूछने के लिए ही वह यहाँ आया है। उस शिशु को कोई हरण कर ले भागा है? उस रूपिणी का विलाप सुनकर यह बुद्धिमान हमारे पास (उसी के विषय में) पूछने के लिए आया है।" घत्ता- तब चक्रेश्वर ने कहा—“उस शिशु का अपहरण किसने किया है? कहाँ है वह? मुझे अपने मन में
आश्चर्य है?"|| 62।।
(13) जिनवर ने बताया कि शिशु-प्रद्युम्न का, पूर्वजन्म के बैरी धूमकेतु दानव ने अपहरण
कर उसे तक्षकगिरि की शिला के नीने चाँप दिया है वस्तु-छन्द—तब त्रिभुवन स्वामी ने उसे बताया- "हे चक्रेश्वर पद्म सुनो, सुर असुर एवं मानवों को त्रास देने
वाला, धूमकेतु नामका एक दानव किष्किन्ध-मलय में निवास करता है—वह (दानव) पूर्व बैर का स्मरण कर और अपने मन में उसके मारने का विचार कर (रानी) रूपिणी के उस शिशु प्रद्युम्नकुमार का अपहरण कर ले गया है।। छ।।
(12) 4. अ. 'य। 5. अ. मणु। 6. अ चक्केस ।
, (10 (4) मूक्ष्मलघु मनुष्प । (5) भरतक्षेत्रे। (6) पुत्र ।