________________
4.7.55)
महाका मिह यिरइज गजुण्णचरिउ
[63
वत्थु-छंद- आय सयल वि मिलेवि सामंत
भूगोयर महि भमेवि णरवरेहिं पुणु वासुएवहो । पणपिणु वज्जरहिं कय तिखंड महिराय सेवहो। अहो परमेसर सयल-इल जोइय दि ण वालु ।
कि देवइँ किं दाणवइँ णियउ सुणयण विसालु ।। छ।। एस्वंतरे पुणु रूविणि-रुवइ । णीसास-दीहे सिरिहरु 'घुअइ । वसुएउ वि विहुणइ णियय-सिरु वलहदु पयंपइ होउ थिरु। तहिं अवसरे जो कोवीण-धरु छत्तिय कोमंडल 'मिसिध करु । जिणि पंचविहु णिज्जियउ करणु जो णवविह वंभचेर धरणु। णह-गामिउ तव-सिरि राइयाउ सौ णारउ तहि जि पराइयउ। सव्वेहिमि उम्मण-दुम्मणेहि मुणि पविउ णाणाविह जणेहिं। रूविणि तहो चलणोवरि पडिय रोवई सदुक्ख सोयइ णडिय। अहो-अहो परमेसर दिववाणि' हुअ पेछु ताय महो पुत्त-हाणि । कहिं गच्छमि को अणुसरमि अज्जु विणु पुत्तइँ महु ण सुहाइ रज्जु । हा सुअ-सुअ कहिं तुहु गयउ वाल महो हियइ-छुहेविण सोय-जाल ।
(7) नारद का आगमन । रूपिणी उससे पूछती है कि हमारे पुत्र का अपहरण किससे करा दिया है? वन्तु-छन्द—समस्त सामन्त एवं भूमिगोचरी नरवर सम्पूर्ण पृथिवी का भ्रमण कर आये और सभी मिल कर
त्रिखण्ड पृथिवी के राजाओं द्वारा सेवित वासुदेव को प्रणाम कर बोले "हे परमेश्वर, हमने सम्पूर्ण पृथिवी खोज डाली किन्तु उस बालक को कहीं नहीं देखा। उस नयन विशाल बालक को क्या कोई
देव ले गया है, अथवा कोई दानव (यह समझ में नहीं आता), ।। छ । । वह रूपिणी पुन: रोने लगी। दीर्घ निश्वासों से वह अपना सिर धुनने लगी । वासुदेव भी अपना सिर धुनने लगे। (यह देखकर) बलभद्र समझाते थे कि "धीरज धरो—धीरज धरो"
उसी समय जो कौपीनधारी है, क्षत्री हैं. कमण्डल से युक्त हाथ वाले हैं, जिन्होंने पाँच प्रकार की इन्द्रियों को जीत लिया है, जो नव प्रकार के ब्रह्मचर्य के धारी हैं, नभोगामी हैं और जो तपश्री से सुशोभित हैं, ऐसे नारद वहाँ आ पहुँचे। सभी अनमने दुर्मने जनों ने मुनिराज को नाना प्रकार से प्रणाम किया। दुःख से व्याकुल शोकाकुल रूपिणी उनके चरणों में गिरकर रोने लगी और बोली-"अहो परमेश्वर, दिव्य वाणी युक्त हे तात् देखो, मेरे पुत्र की हानि हो गयी है। अब मैं कहाँ जाऊँ, क्या काम करूँ, क्या अनुस? आज बिना पुत्र के मुझे राज नहीं सुहाता । मेरे हृदय को शोक- जाल में डुबाकर हा सुत-हा सुत, हे बाल, तू कहाँ चला गया?"
{D I. ब अ. मु'। 2. अ.न
.
पा