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महाकह सिंह विरह गज्जुण्णचरिउ
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अतुल-परक्कम-विक्कमसारहँ घरे अच्छहि सय-पंच-कुमारहँ।
तहँ अग्गइ एउ काइँ करेसइँ रज्जु-धुरंधरु किम किर होसइ। घत्ता – ता पभणइँ गरणाहु कंति म जाहे विसायहो।
तहुँ जि पटट-मदावि दिण्णू रज्ज़ मई आयहो।। 53 ।।
वत्थु-छंद- तं णरेसहो वयणु णिसुणेवि संतोसु
परिवटियउ लइउ वालु उछंगे देविए। गह-जाणु संचालियउ णिय-णाहहो चलण-सेविए।। मेहकडु तक्खणे गयइँ जं मढ-मढिउ रवण्णु।
सरि-सरबर वर सुरहरहँ घण तरुवर सछण्णु ।। छ।। गुडिउ 'घरणिहिँ रच्छा सोहहिं तूर-णिणाय भुवनसंखोहहिं । पिउ-पियय मणि रुहिट्ठ पहिलइँ जय-जय सद्दइँ णयरे पइठहै। जणु जंपइ णिय पइ-पय-सेविए गूढ-गब्भु हुँतउ महएविए।
समय अतुल पराक्रम वाले तथा सारभूत विक्रम वाले जो 500 राजकुमार हैं उनके आगे यह क्या कर पायेगा? राज्य की धुरा को यह कैसे धारण कर पायेगा?" छत्ता- यह सुनकर राजा ने कहा- "हे कान्ते, विषाद को प्राप्त मत हो। तू तो पट्टमहादेवी है अत: तेरी
साक्षी से मैंने आज से ही इसे राज्य प्रदान कर दिया है।" ।। 5311
कालसवर के यहाँ शिशु (प्रद्युम्न) का उचित लालन-पालन होने लगा और इधर
उसकी माता रूपिणी उसकी खोज करने लगी वस्तु-छन्द- राजा की प्रतिज्ञा सुनकर रानी का सन्तोष बढ़ा। अपने पति की चरण सेविका उस देवी रानी ने
बालक को अपनी उत्संग (गोद) में ले लिया और नभोवान को संचालित किया। जो मठ एवं मढ़ियों से रम्य है। जहाँ उत्तम-उत्तम नदियाँ एवं सरोवर हैं, जहाँ उत्तम सुरघर (देव विमान) के समान घर बने हुए हैं जो विविध तरुवरों से संछन्न हैं (अर्थात् जहाँ अनेक उपवन हैं)। उस मेघकूट-पुर
में उसका यान तत्काल ही पहुँच गया।। छ।।। घरों के दरवाजों एवं मार्गों में चित्राकृतियाँ बनाकर उन्हें सुशोभित किया गया। तूर- निनादों से भुवनों को संक्षुब्ध कर दिया गया। अपने मन में अत्यन्त हृष्ट-प्रहृष्ट हुए प्रिया और प्रियतम जय-जय शब्दों के बीच नगर में प्रविष्ट हुए। वहाँ मनुष्य (परस्पर में) कह रहे थे कि "अपने पति की चरण-सेविका महादेवी को गूढ-गर्भ था
(4)11) राजाराशी।