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________________ 58] महाका सिंह विरइउ पञ्जुश्णचरित [4.3.1 वत्थु-छंद- ताम कंचणमाल तहिं चदइ अवलोयहि धरणियलु सत्तु-मित्तु अह कोवि णाणिउ। णह-जाणु चल्लइ जिण' कारणु तंपि जाणिउं ।। तहि अवसरे परवइ स पिउ णियइ अहमहु जाव। दलु-छिण्णहँ तरुवरहँ जिम सिल परिकंपइ ताव ।। छ।। तं अच्चरिउ णिएवि गरेसर मेहकूडु पुरवर परमेसरु। गउ उयरेवि विमाणहो तेत्तहिं थरहरंति सिल अच्छई जेत्तहि । साहेलइ उच्चाइय राय कोडिसिला इव दहरह-जाय। ता तहिं बहु-लक्खण-रयणायरु दिट्छु वालु णं बाल दिवायरु । णं वणसिरि वियसिय रत्तुप्पलु णं कंकल्लिहिं शव-किसलय-दलु । पुणु उच्चाएकि गयण-विसालो हाविउ देविह कंचणमालहो । ताई पडिच्छिदि भणिउ णरेसर पिय ससरीर णिसुणि वम्मीसर । जं हउँ असुव) भणेवि तं जुत्तर दिष्णु पुत्तु किं तुहुमि अपुत्तउ । पट्टरानी कंचनमाला पुत्र-विहीन थी, अत: राजा कालसंवर उसे पुत्र के रूप में उस बालक को दे देता है तथा उसी दिन उसे राज्याधिकारी भी घोषित कर देता है वस्तु छन्द- तब राजा ने उस कंचनमाला से कहा—"हे कंचनमाले, देखो धरणीतल पर (अवश्य ही) कोई पात्रु. मित्र अथवा ज्ञानी पुरुष है जिस कारण से नभोयान नहीं चल रहा है। उसके कारणों को जानो।" उसी समय प्रियतमा के साथ उस नरपति ने नीचा मुख करके वृक्षों के दलों को फैला कर जब देखा तो वहाँ एक शिला काँप रही थी।। छ।।। मेघकूटपुर का वह परमेश्वर नरेपवर (-कालसंवर), उसे देखकर आश्चर्यचकित हुआ। वह विमान से उतर कर वहाँ गया, जहाँ शिला थरहरा रही थी। कालसंवर ने उस शिला को सहज ही उसी प्रकार उठा लिया, जिस प्रकार (राजा) दशरथ के पुत्र (लक्ष्मण) ने कोटि शिला को सहज में ही उठा लिया था। वहाँ उसने अनेक सुलक्षणों के रत्नाकर रूप तथा बाल-दिवाकर (सूर्य) के समान तेजस्वी बालक को देखा उसे वह बालक ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों वनश्री का विकसित लालकमल ही हो अथवा मानों कंकेलि (अशोक) का नवीन किसलय (कोंपल) पत्र हो। उस बालक को उठाकर वह नयन-विशाला कंचनमाला देवी के पास ले गया और उसे देकर उसने कहा—"हे प्रिये सुनो, यह सशरीर कामदेव है। यह पुत्र तुम्हें मैंने क्यों दिया? क्योंकि तुम पुत्र-विहीन हो अत: अब इसे तुम अपना ही पुत्र मानो। मैंने इसे जो 'पुत्र' कह दिया है, वह ठीक ही है। किन्तु घर में इस (3) 1-2.3 इF का भरप। 3. अ 'अ। (३) लेनकारणे । (2) पर्णछेदसिलाउंदीक्षत । (३) अहंपुनरहिता।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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