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महाकर सिंह विरइ पज्जुश्णचरिउ
कंचण-मय-धरपवर जहिं दीहर णयण-विसाल । राउ कालसंवरु वि तहिं राणिय कंचणमाल ।। छ । ।
अवरहिं रखोलिर उरिहिं जिय अलि-तमाल-अलयावलिहि विण्णाण - कला-गुण-जाणियहँ पंच- सय कुमार णर वइहे एक्कहि दिणे सो मेइणि वलउ पिय कंचनमाला परियरिउ चल्लिउ झडति णं मण-पवणु जहिं खइराड्यहे () सिलाहि तले
(3) 2 ब अ ।
- पीत्तुंग पऊहरिहिं । णं ममरद्धय वाणावलिहिं । सय- तिणि- स तो राणियहँ । सुहुत्तणं हे सुरवइहे । वियरंतु संतु दाहिण - मलउ । विज्जाहरु हं जाणइँ तुरिंउ । संपत्तउ तं गिरिवर-गहणु । परिसंठिउ बालउ धरणियले ।
धत्ता — खलिउ विमाणु ज्झत्ति तह विज्जाहर-रायहो । पुंछिय कंचणमाल पिए किं कारण
हो ( 2 ) ।। 52 ।।
वहाँ का राजा कालसंवर ( नामका ) है, जिसके नेत्र दीर्घ एवं विशाल हैं और जिसकी रानी का नाम कंचनमाला ।। छ।।
इसके अतिरिक्त भी उस राजा की अन्य 360 रानियां और थीं, जो खुल खुल करते नूपुरवाली एवं घने घने पीन उत्तुंग पयोधर वाली थीं। जिनकी अलकावली अलि अथवा तमाल के समान कृष्ण वर्ण की थी। वे ऐसे प्रतीत होते थे, मानों मकरध्वज (कामदेव ) की वाणावलि ही हो । वे सभी रानियाँ विज्ञान एवं कलागुण की जानने वाली थीं। उस राजा के 500 पुत्र थे। उस राजा का पृथिवी पर उसी प्रकार का प्रभुत्व था, जिस प्रकार सुरपति का आकाश (स्वर्ग) में |
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किसी एक दिन वह राजा मेदिनी वलय में विचरता हुआ प्रिया कंचनमाला सहित विद्याधर नभोयान (विमान ) से शीघ्र ही दक्षिणमलय की तरफ चला । मन और पवन के वेग के समान चलकर वह झट से उसी गहन गिरिवर में जा पहुँचा, जहाँ उस खदिराटवी में धरणीतल पर शिला के तले वह बालक (प्रद्युम्न ) चँपा पड़ा था । उस विद्याधर राजा का विमान वहाँ झट से स्खलित हो गया ( रुक गया ) । तब कंचनमाला ने अपने प्रिय पति से पूछा कि इस विमान के यहाँ रुकने का क्या कारण है?" ।। 52 ।।
घता
(2) (1) अय्या (2) विमानणल्य