________________
56]
15
महा सिंह विरह जुण्णचरिउ
कहिं पिई सुसद्द - महूर गायए गिरीसु लक्खउ चित्तेण दिट्ठउ विपारिऊण किंतु णहमि मारमि किं अज्जु" घिवमि उदहि मज्मे वाडवे परं मरेइ अज्जु णत्थि जीवियं धरायले सिला-विसाल चप्पियं किं मिच्चु ए ण 4 केवली सुलक्खणे
(1) 8. अलि 12. अ.
(2) 1. अ. हि ।
पत्ता- ता तर्हि पिसि परिगलिय सव्वंगारुण
वस्थु-छंद-
कायउ ।
णं वालहो आवइए सूरु पुव्व - दिस आयउ ।। 51 ।।
(2)
वस्तु-छन्द —
लए
कहिं सुवंसु सुसिर-वण वायए । वालु तत्थ सो मइउ । विचिंतए णिसिंदु' वइरु'" सारमि । पयंड - मच्छ-सुसुभार 2 फाइवे । कह हणेमि तं भणेमि एम स्वीवियं । सुअं भणेवि वालयं विर्याप्पियं ।
गए णिसायरम्मे तत्थ तक्खणे ।।
जंबुदीवहँ भरहे' सुपसिद्ध
वेयट्टु दाहिणि दिसहि मेहकुड्डु णामेण पुरवरु । जण धण्ण-कण-भर पउर गंदण-वण सरिसु सरवरु ।।
कहीं उत्तम बाँस-सुसिर- राग का आलाप कर रहे थे। ऐसे उस तक्षक पर्वत को मनोयोगपूर्वक उस दानव ने देखा और वह उस बालक को लेकर वहाँ प्रविष्ट हुआ। वह बैरी राक्षस इस प्रकार विचार करने लगा - "क्या मैं तुझे आकाश में फेंक कर मार डालूँ और अपना बैर भुना लूँ? क्या तुझे आज मैं बडवानल वाले तथा प्रचण्ड मच्छ, सुंसुमार (मगर) से युक्त विशाल भयानक समुद्र में फेंक दूँ? जिससे तू आज ही मर जाए जीवित न रह सके ? मैं इसे कैसे मारूँ? इस फेंके हुए को मैं किससे कहूँ कि उसे ऐसे मारा है?" इस प्रकार विकल्प कर दानव ने उस बालक को लेकर धरातल में विशाल शिला के नीचे चाँप दिया। यह सुलक्षणों वाला बालक भावी केवली है। इसे मृत्यु से क्या (भय) यह विचार कर वह निशाचर वहाँ से तत्क्षण चला गया?
पत्ता
तब वहाँ रात्रि गलित हो ( बीत) गयी। सर्वांग (आकाश) अरुणाभ हो गया। मानों बालक की आपत्ति से ही सूर्य पूर्व दिशा में आ गया हो ( अर्थात् प्रभात हो गया ) ।। 51 ||
[4.1.11
(2)
राजा कालसंवर का नभोयान तक्षकगिरि के ऊपर अटक जाता है
- जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सुप्रसिद्ध वैताढ्य (विजयार्ध) नामका पर्वत है, जिसकी दक्षिण दिशा में मेघकूट नामका एक बड़ा नगर है। जो प्रचुर जन-धन एवं कण से समृद्ध है तथा वहाँ नन्दनवन के समान वन हैं और जो विशाल सरोवरों से मुक्त है— जहाँ कंचनमय श्रेष्ठ भवन बने हुए हैं।
9-10. अ. वि सिग्धु येरु। 11. अ. मक्कु । 13 व 14. अ. 'म