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________________ 18) महाहव सिंह विराउ पन्जुण्णचरिज मालवा के अभिलेखों में नहीं मिलता। बड़नगर की प्रशस्ति का समय वि०सं० 1208 है।' : जसले गर्व ही इस ना दो चका दोगा! बल्लाल का पिता रणराग ही प०च० का रणधोरी मानना चाहिए। बहुत सम्भव है कि बल्लाल के पिता रणराग का रण की धुरा को वहन करने के कारण रणधोरी ग्रह विरुद रहा हो? __ हम ऊपर चर्चा कर आये हैं कि बल्लाल ने मालवा पर आक्रमण के पूर्व, उत्तर में किसी भिल्लम को पराजित किया था। वह 'बम्हणवाड' का शासक रहा होगा, जिसे कवि ने गुहिल-गोत्रीय क्षत्रियवंशी भुल्लण कहा है। बल्लाल ने उसे पराजित कर अपना सामन्त बनाया होगा और उसे ही कवि ने भृत्य की उपाधि प्रदान की है, जो माण्डलिक की कोटि में आता है। उक्त राजाओं में से बल्लाल का समय शि०सं० 1161-62 के आसपास निश्चित है। इसी आधार पर पज्जुण्णचरिउ का मूल रचनाकाल भी वि०सं० की 12वीं सदी का अन्तिम चरण माना जा सकता है। 10. ग्रन्थोद्धारक महाकवि सिंह पज्जुण्णचरिउ के उद्धारक कवि सिंह ने अपनी विद्वत्ता के विषय में तो संकेत दिए हैं, किन्तु व्यक्तिगत परिचय में उन्होंने भी कोई विशेष सूचनाएँ नहीं दीं। उक्त ग्रन्थ की अन्त्य-प्रशस्ति में ओ सूचनाएँ मिलती हैं, वे इस प्रकार हैं(1) उसके पिता का नाम बुध रल्हण एवं माता का नाम जिनपति था। बुध की उपाधि से यह स्पष्ट होता है कि उसके पिता भी कवि रहे होंगे, यद्यपि उनकी रचनाओं का पता नहीं चल सका है। (2) महाकवि सिंह अपने परिवार में सबसे बड़े भाई थे। उनके अन्य तीन छोटे भाईयों के नाम थे— सुहंकर (शुभंकर), साहारण (साधारण) एवं महादेव। (3) कवि गुर्जर देश एवं गुर्जर कुल में उत्पन्न हुआ था। (4) कवि अपभ्रंश के साथ-साथ संस्कृत का भी धुरन्धर विद्वान्-कवि था, क्योंकि उसने 10वीं सन्धि से अन्तिम सन्धि तक प्रत्येक सन्धि के अन्त में रचना-महिमा, कवि-महिमा, अथवा स्व-कवित्व-महिमा को ध्वनित करने वाले संस्कृत श्लोक दिए हैं । ये श्लोकशार्दूलविक्रीडित छन्द के हैं। महाकवि सिद्ध ने भी संस्कृत श्लोकों का प्रयोग किया है, किन्तु 8 सन्धियों में उनकी संख्या केवल 2 ही है। भले ही सिंह ने सिद्ध की उक्त परम्परा का निर्वाह किया हो फिर भी संस्कृत-भाषा ज्ञान में वे सिद्ध की अपेक्षा अधिक अलंकृत प्रतीत होते हैं। (5) महाकवि सिंह, सिद्ध की अपेक्षा एक अहंकारी कवि प्रतीत होते हैं। जहाँ सिद्ध कवि अपने को कवित्व के क्षेत्र में अज्ञानी, कुब्जा, बौना आदि कहते हैं, वहीं पर सिंह कवि ने अपने को काव्य-क्षेत्र में "सिंह वृत्ति वाला" तथा "बाल-सरस्वती” तक भी कह दिया है। (6) सिंह कवि के गुरु का नाम अमृतचन्द्र था । जो मलधारी उपाधि से विभूषित थे। गुरु अमृत चन्द्र के गुरु एवं अन्य विषयक उल्लेख प्रशस्ति में अनुपलब्ध हैं। सारांश यह है कि जिनमति एवं बुध रल्हण के पुत्र सिंह ने अपने गुरु मलधारी देव अमृतचन्द्र के आदेश से 1. 'भारतीय इतिहास : एक दृष्टि' में इसका नान वहम है. जें भ्रमत्मक है। 2. प. च. 157259:91 3. वही-, 15:29:13-13 | 4 वहीं0 15:26: 12वीं सन्धि की पुष्पिका। 5. दही0. 1:32-71 6. नही० 14वीं नन्धि का अन्तिम संस्कृत म एवं 15:29:11।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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