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प्रस्तावना
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विजय प्राप्त करने में सन्देह भी उत्पन्न हो जाता होगा, फिर भी उसने अपनी पूरी तैयारी कर उस पर आक्रमण किया और अन्तत: उसे पराजित कर दिया। बड़नगर-प्रशस्ति का यह उल्लेख कि-"कुमारपाल ने मालबाधिपति बल्लाल क. शिरच्छेद कर उसका मस्तक अपने राजप्रासाद के द्वार पर लटका दिया था. यह कथन वस्तुत: बल्लाल की दुर्दम शक्ति एवं पराक्रम के विरुद्ध कुमारपाल के संचित कोध का ही ज्वलन्त उदाहरण है। ___ अर्णोराज के लिए क्षयकाल के समान तथा रिपु-सैन्य-दल का मन्धन कर देने वाला यह बल्लाल कौन था? इसके विषय में विद्वानों ने अपने-अपने अनुमान व्यक्त किये हैं, किन्तु वे सर्वसम्मत नहीं हैं।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार ल्यूडर्स के अनुसार अज्ञात कुलशील बल्लाल ने परमारवंशी यशोवर्मन् को पराजित कर मालवा के कुछ अंश को हड़प लिया था। श्री सी०वी० वैद्य के अनुसार "बल्लाल" शब्द एक विरुद (अपरनाम) था, जो कि उक्त यशोवर्मन् (परमार) के प्रथम पुत्र राजकुमार जयवर्मन् के साथ संयुक्त था। मालवा के अभिलेखों में बल्लाल नाम के किसी भी राजा का उल्लेख नहीं है, जब कि उक्त जयवर्मन् को होयसल- नरेश न सेंह-प्रधम की सहायता से कल्याणी के चौलुक्य-नरेश जगदेकमल्ल (वि.सं० 1196-1207) ने पराजित कर मालवा क. राज्य हड़प लिया था। उक्त चौलुझ्यवंशी जगदेकमल्ल का आक्रमण मैसूर के एक शिलालेख से प्रमाणित है। उसके प्रकाश में अध्ययन करने से बह प्रतीत होता है कि 'बल्लाल' यह नाम 'दाक्षिणात्य' है। अत. वह परमार-वंशी जयवर्मन् का अपरनाम नहीं हो सकता। इसमें कुछ भी तथ्य प्रतीत नहीं होता कि उत्तर-भारत का कोई राजा अपना नाम दाक्षिणात्यों के नाम-साम्य पर रखता ।
हमारा अनुमान है कि महाकवि सिद्ध द्वारा उल्लिखित बल्लाल होयसल-वंशी बल्लाल राजाओं में से कोई एक बल्लाल ही रहा होगा। उक्त राजवश में उस नामके तीन राजा हुए है। किन्तु आचार्य हेमचन्द्र ने कुमारपाल की जिस मालव्पति बल्लाल के साथ युद्ध की चर्चा की है वह होयसल-वंशी नरेश रणरंग का ज्येष्ठ पत्र होना चाहिए, जिसका समय बिसं० 1158-1163 है।' इत्त सन्दर्भ में आचार्य हेमचन्द्र एवं बडनगर की वह प्रशस्ति ध्यातव्य है, जिसके अनुसार कुमारपाल ने स्वयं या उसके किसी सामन्त ने युद्ध-क्षेत्र में ही बल्लाल का वध कर दिया था। अत: प्रतीत होता है कि बल्लाल वि०सं०1161-62 में दक्षिण से साम्राज्य-विस्तार करता हुआ उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रहा होगा और किसी भिल्लम शासक को पराजित करता हुआ वह मालवा की ओर बढ़ा होगा तथा अवसर पाकर उसने मालवा पर आक्रमण किया होगा और सफलता प्राप्त की होगी किन्तु मालवा पर वह बहुत समय तक टिक न सका। वह सम्भवत: सिद्धराज जयसिंह के अन्तिम काल में वहाँ का अधिपति हुआ होगा। जयसिंह की मृत्यु के बाद चाहड़ एवं कुमारपाल के उत्तराधिकार को लेकर किए गये संघर्ष-काल के मध्य ही बल्लाल मालवपति बनकर वहाँ अपने स्थायी पैर जमाने के लिए सैन्य-संगठन एवं आसपास के पड़ोसी राजाओ के साथ सन्धियाँ करता रहा होगा। इसी बीच कुमारपाल अणहिलपाटन का अधिकारी बना होगा। आचार्य हेमचन्द्र ने उसके राज्य को निष्कंटक बनाने हेतु सर्वप्रथम मालवपति बल्लाल को पराजित करने की सलाह दी होगी। बल्लाल की पराजय एवं वध उसी का फल था। अल्पकालीन विदेशी नरेश होने के कारण ही उसका नाम
1. वसन्त-विला. 3.29 बल्लालाल्लिालरतिसा ख ३ण्डेय कन्दुवालीलपैन। 2. एपिः ६०, खग्ड 1, पृ0 302, पर 15; बही. vड 7.20 202-9: J. पोस्टिनस 1:
4 4. चौक्य, पृ. 1091 5. पोलिटिकलः, पृ. 1141 6. सर स्किपास, 20 58. 153. 7. प्राचीन भारत. पृ. 685-87. 8. भारतीय इतिहास गृ: 341। ५. प्राचीन भारत. 70 6811001 10. प्रबन्ध चिन्तामणि - मारमा नादि प्रबन्ध प्रकरण |26-1291 11. एनि० ई०, त्य :.0293