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________________ 16] महारुद्र सिंह विरहउ पज्जुण्णचरिउ तर्कशास्त्र रूपी लहरों से झंकृत, परम श्रेष्ठ तथा व्याकरण के पाण्डित्य से अपने पद का विस्तार करने वाले थे। जिनकी इन्द्रिय-दमन रूपी वक्र- भृकुटि देखकर मदन भी आशंकित होकर प्रच्छन्न ही रहा करता था। विद्वानों में श्रेष्ठ वे अमृतचन्द्र भट्टारक अपने शिष्यों के साथ-साथ नन्दन - वन से आच्छादित मठों, विहारों एवं जिन भवनों से रमणीक बम्हडवाडपट्ट्न पधारे। "2 कवि के इस वर्णन से यह तो विदित हो जाता है कि अमृतचन्द्र भट्टारक तपस्वी साधक एवं विद्वान् थे किन्तु उनका क्या समय था, इसका पता नहीं चलता। कवि ने बम्हडवाडपट्टन के तत्कालीन शासक भुल्लण का उल्लेख अवश्य किया है, जो राजा अर्णोराज, राजा बल्लाल एवं सम्राट कुमारपाल का समकालीन था । उनका समय चूँकि वि०सं० 1199 से 1229 के मध्य सुनिश्चित है, अत: उसी आधार पर भट्टारक अमृतचन्द्र का समय भी वि०सं० की 12वीं सदी का अन्तिम चरण या । 3वीं सदी का प्रारम्भ रहा होगा । 9. समकालीन शासक महाकवि सिद्ध ने बल्लाल को 'शत्रुओं के सैन्य दल को रौंद डालने वाला' तथा 'अर्णोराज के क्षय के लिए काल के समान' जैसे विशेषण प्रयुक्त किए हैं, जो बड़े ही महत्वपूर्ण हैं । कवि का संकेत है कि अर्णोराज बड़ा हो बलशाली था । उस के शौर्य-वीर्य का पता इसी से चलता है कि कुमारपाल जैसे साधन-सम्पन्न एवं बलशाली राजा को उस पर आक्रमण करने के लिए पर्याप्त गम्भीर योजना बनानी पड़ी थी। लक्षग्रामों के अधिपति अर्णोराज ने सिद्धराज जयसिंह के विश्वस्त पात्र उदयनपुत्र बहड़ ( अथवा चाहड़ ) जैसे एक कुशल योद्धा एवं गजचालक, वीर पुरुष को कुमारपाल के विरुद्ध अपने पक्ष में मिला लिया था। इसके साथ-साथ उसने अन्य अनेक राजाओं को भी धमकी दे कर अथवा प्रभाव दिखा कर अपने पक्ष में मिला लिया था। मालव नरेश बल्लाल के साथ भी उसने सन्धि कर थी और कुमारपाल के विरुद्ध धावा बोल दिया था। कुमारपाल उसकी शक्ति एवं कौशल से स्वयं ही घबराया हुआ रहता था। कवि सिद्ध को अर्णोराज की ये सभी घटनाएँ सम्भवत: ज्ञात थीं। किन्तु ऐसे महान् कुशल, वीर, लड़ाकू एवं साधन-सम्पन्न ( चाहमान ) राजा अर्णोराज के लिए भी राजा बल्लाल को "क्षय-काल समान" बताया गया है। इससे यही ध्वनित होता है कि बल्लाल अर्णोराज से भी अधिक प्रतापी नरेश रहा होगा। यद्यनि उसने समस्वार्थ विशेष के कारण किसी अवसर पर अर्णोराज के साथ राजनैतिक सन्धि कर ली थी । अर्णोराज एवं बल्लाल के बीच युद्ध होने के प्रमाण नहीं मिलते। अतः प्रतीत यही होता है कि अर्णोराज बल्लाल से भयभीत रहता होगा। इसीलिए कवि ने बल्लाल को अर्णोराज के लिए क्षयकाल के समान' कहा है। कवि द्वारा बल्लाल के लिए प्रयुक्त "शत्रु-दल-सैन्ध का मन्थन कर डालने वाला" विशेषण का अर्थ भी स्पष्ट है । बल्लाल की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर आचार्य हेमचन्द्र को लिखना पड़ा कि 'अर्णोराज पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् कुमारपाल को यह सलाह दी गयी कि वह मालवाधिपति बल्लाल को पराजित कर यशार्जन करें ।" इससे यह प्रतीत होता है कि कुमारपाल ने भले ही अनेक राजाओं पर विजय प्राप्त कर ली हो, किन्तु बल्लाल पर विजय प्राप्त किये बिना उसका राज्य निष्कंटक न हो पाता तथा उसे यशः प्राप्ति सम्भव न होती । बल्लाल ने कुमारपाल के आक्रमण के पूर्व उसके दो विश्वस्त सेनापतियों— विजय एवं कृष्ण को फोड़कर अपने पक्ष में मिला लिया था । 10 इस प्रकार कुमारपाल बल्लाल से भी आतंकित हो गया था, कभी-कभी उसे उस पर 1. पञ्च 14:35 2, बहीं0 1:4:6-8 3. वही 14:9-101 4. बड़ी०, 1/4/8 5. वहीं० 1/4/8 6. चौलुक्य कुमारपाल, पृ० 101 7. वही०. 102 8. ही 8.0 9-10. द्वपःश्रम काव्य 19/97-98 - • रक्षेपिशुभिर्दामानिर्भरौलपिभिर्वृत श्रीमतैः श्रीमातुं बल्लो दर्पतोऽभ्यगात् । । शमीवत्याभिजित्पभ्यां तौसावत्येन चैत्रते कृत्यौ विभेद समन्नान विजयकृष्णको ।।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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