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________________ प्रस्तावना [15 भट्टारकीय-परम्परा का श्रद्धालु भक्त था। 6. ग्रन्थ-रचना-स्थल कवि ने हट ही निशा है कि माल अमरकर (अमृतचन्द्र) ने उन्हें बम्हडवाडपट्टन में पञ्चक के प्रणयन का आदेश दिया था। इससे यह विदित होता है कि कवि सिद्ध ने उसकी रचना वहीं बैठ कर की होगी। पच0 के अनुसार बम्हडवाडपन विविध जैन-मठों. विहारों एवं रमणीक जिन-भवनों से सुशोभित था। वह सौराष्ट्र देश में स्थित था। बम्हडवाड की अवस्थिति, जलवायु तथा वहाँ के निवासियों की सुरुचि-सम्पन्नता ने उस भूमि को सम्भवतः साधना-स्थली बना दिया था। इन्हीं कारणों से आचार्य, लेखक और कधि वहाँ प्रायः आते-जाते बने रहते होंगे। लगता है कि महाकवि सिद्ध भी उसी क्रम में भ्रमण करते-करते वहाँ आये होंगे और संयोगवश उली समय जब उक्त अमृतचन्द्र भट्टारक भी विहार करते हुए वहाँ पधारे तब वहाँ भेंट होते ही भट्टारक के आदेश से उन्होंने प्रस्तुत प०च० की रचना की थी। 7. मूल ग्रन्थकार – निवास-स्थल यह कहना कठिन है कि कवि सिद्ध कहाँ के निवासी थे। कवि ने स्वयं ही उसकी कोई चर्चा नहीं की और न उसने अपने कुल-गोत्र या अन्य विषयक ऐसी कोई चर्चा ही की है कि उससे भी कुछ जानकारी मिल सके। किन्तु उनके माता-पिता के नामों की शैली देख कर यह अवश्य प्रतीत होता है कि वे दाक्षिणात्य थे तथा उनका निवास स्थल कर्नाटक में कहीं होना चाहिए। क्योंकि सिद्ध, पम्पा, देवण्ण आदि नाम कर्नाटक में ही प्राय: देखे जाते हैं। कवि ने अपनी उपाधि के रूप में मुनि, साधु, विरत अथवा तत्सम ऐसे किसी विशेषण का उल्लेख नहीं किया है। इससे यह प्रतीत होता है कि वह गृहस्थ रहा होगा और ज्ञान-पिपासा की तृप्ति अथवा वृत्ति हेतु भ्रमण करता-करता बम्हडबाडपट्टन पहुँचा होगा। कवि ने दक्षिण के अनेक देशों एवं नगरों आदि के प्राय: उल्लेख किये हैं। इनसे भी यही प्रतिभासित होता है कि कवि दाक्षिणात्य अथवा कर्नाटक-प्रदेश का निवासी रहा होगा। ४. गुरु-परम्परा एवं काल महाकवि सिद्ध ने लिखा है कि अमृतचन्द्र भट्टारक ने उसे पच० के प्रणयन का आदेश दिया। इससे यह सिद्ध है कि अमृतचन्द्र भट्टारक ही कवि के काव्य-प्रणयन में प्रेरक गुरु थे। कवि ने उन्हें मलधारीदेव, मुनिपुंगव माधवचन्द्र का शिष्य कहा है किन्तु वे किस गण एवं गच्छ के थे, इसके विषय में कवि ने कोई सूचना नहीं दी। ___ माधवचन्द्र की 'मलधारी' उपाधि से यह प्रतीत होता है कि वे मूलसंघ कुन्दकुन्दान्बय की परम्परा के आचार्य रहे होंगे, जिनका समय 12वीं सदी के लगभग रहा है। किन्तु इनकी निश्चित परम्परा एवं काल की जानकारी के लिए निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। मलधारी माधवचन्द्र के विषय में कवि ने लिखा है कि वे मलधारीदेव माधवचन्द्र मुनिपुंगव मानों धर्म, उपशमन्ति एवं इन्द्रियजय की प्रत्यक्षमूर्ति थे। वे क्षमागुण, इच्छा-निरोध तथा घम-नियम से समृद्ध थे। इस वर्णन से विदित होता है कि माधवचन्द्र घोर तपस्वी एवं साधक थे। सम्भवतः उन्होंने किसी ग्रन्थ का प्रणयन नहीं किया, अन्यथा कवि उसके विषय में संकेत अवश्य करता। उनके शिष्य अमृतचन्द्र भट्टारक के विषय में कवि ने लिखा है कि—"मलधारी देव माधवचन्द्र के शिष्ट अमृतचन्द्र भट्टारक थे, जो समरूपी तेज के दिवाकर, व्रत-तप, नियम एवं झील के रत्नाकर, -- - -- - - 1. जैन गिलालेख संग्रह, भाग 2, भूमिका 3051-551 2. 70च0 14121
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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