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________________ 54) महाकद सिंह विराउ पझुण्णचरित [3.146 अद्ध रत्तए "गए लोयएण सुत्तए। ताण हम्मे जंतए दुद्धमे महंतए। भग्ग देव-माणवे धूमकेय दाणए। अंतरिक्ख जाणय थंभियं विमाणयं । ताम विभओ मणे चिंतवेइ तक्खणे। केण वोम जाणयं थंभियं विमाणयं। तं णहम्में वालिय मंदिरं णिहालिय। गेवमाण वालओ सद्द सो विसालओ। सो हरेवि आणिओ पुव्व-वेरि जाणिओ। मंदिराउ कढिओ वालु लेवि बड्ढिओं। किलि-किलंतु णिग्गिओ वोम-मंडलं गओ। तच्छ सो ण मारिओ णं विही णिदारिओ। पत्ता- खइराडवि जहिं सो णियए रूविणिहिं सुउ तहिं णाणा लक्खण रिद्धउ। ___किर डि-खय-कंदराउ परिफुरियमउ जहिं तक्खउगिरि सुपसिद्धउ ।। 50।। इय पज्जुण्ण कहाए पयडिय-धम्मत्थ-काम-मोक्खाए कइसिद्ध विरइयाए घूमकेतु-दानव पज्जुण्णकुमारावहरणं णाम तीउ-संधी परिसमत्तो।। संधी: 3 ।। छ।। 15 लोग सो चुके थे, तब आकाश में जाता हुआ दुर्दम महान् अन्य देवों और मनुष्यों को भग्न (पीड़ा) करने वाला, धूमकेतु नामके दानव का यान—विमान अंतरिक्ष में रुक गया। तब वह मन में विस्मित हुआ तत्क्षण चिन्ता करने लगा। यह व्योम यान--विमान किसने स्तम्भित किया है? तब उसने आकाश में अपने विमान में से एक मन्दिर (राजभवन) देखा तथा उसमें रोते-गाते शब्द करते हुए एक विशाल शिशु को देखा। उसे पूर्व-जन्म का बैरी जानकर उसने उसका अपहरण कर लिया। उसने मन्दिर (महल) से उस बालक को निकाला और उसे लेकर आगे बढ़ा। किलकिलाता हुआ वह वहाँ से निकला और व्योम मण्डल में चला गया। वहाँ उसने उसे मारा नहीं, मानों विधि (भाग्य) ने ही (उसे ऐसा करने से रोक दिया हो। घत्ता- वह यक्षराज दानव नाना लक्षणों से समृद्ध रूपिणी के पुत्र को उस खदिरा-अटवी में ले गया, जहाँ कन्दों को खाने वाले सैकड़ों शूकर चंचल मृगों को भय उत्पन्न करते रहते हैं। वहीं पर तक्षक नामका एक सुप्रसिद्ध पर्वत है।। 5011 इस प्रकार धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को प्रकट करने वाली सिद्ध कवि द्वारा विरचित प्रद्युम्न कथा में धूमकेतुदानव द्वारा प्रद्युम्न के अपहरण सम्बन्धी तृतीय सन्धि समाप्त हुई। सन्धि: 3।। छ।। (14) 4. अ. ह। 5. अ. 'क्क । 6. अ किंडि। 7-8. अ.। (14 (3) वा । 14 'मानं । 157 !eth |
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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