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महाकद मिह विर पञ्जुष्णचरित
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करावियं महोच्छवं वरं स-पट्टणे अरी-परिंद-विंद-थट्ट-लोटणे। धर-घरं पि मंगलाइँ-तूर वज्जए अयाले तक्खणे णवं घणुव्व गज्जए। कहिं पि चारु घुसिण-छउड दिज्जए कहिं चउक्क-सारु मोत्तिएहि किज्जए । सुपस्स दसणेण रूविणी पहिठ्यिा हरि-हरेण अमरसरिव दिठ्ठिया। गउ पुणोवि कण्डु सच्चहावहे घरे समाणु-दाणु कारिऊण संहिउ बरे।
णडति हार-डोर भूसियाउ कामिणी इहप्पयारएण जाम पंच-जामिणी।) घत्ता..- छठि जायरणु जा महुमहणु दोहिमि राउलहिं करावइ। रूवें-सच्च सुयहं सुललि भुअहं रासिहि अहिहाणु धरावइ ।। 49 ।।
(14) गाहा - रूविणि-सुअस्स रइयं अहिहाणं गणणएहिं पज्जूण्णो।
सच्चाहिं भाणु अण्णो भणिउ 'बहु-गंधत्थ-जाणेहिं ।। छ।। 'भाम रूविणि घरे
गीय-मंगले वरे। वारु मत्तवापरणे
बद्ध मत्तवारणे। गुंठ पुष्फ-दामए
भिंग संग कामए।
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घर-घर मंगलाचार होने लगे। उसी समय अकाल में ही नवमेघ की गर्जना के समान तूर-वाद्य बजने लगे। कहीं तो सुन्दर घुसृण (चन्दन) का छिड़काव किया जा रहा था, तो कहीं मोतियों से सारभूत चौक मॉडा जा रहा था। सुपद्म—हरि द्वारा किये गये पुत्र दर्शन से रूपिणी उसी प्रकार हर्षित हुई जिस प्रकार हरिहर द्वारा देखी गयी अमरसरित—गंगा। पुन: (रूपिणी के यहां से लौटकर वह) कृष्ण सत्यभामा के घर गया (और वहाँ भी) सम्मान-दान कराकर वह वहाँ संस्थित हुआ। वहाँ हार-डोरा (कटिबन्ध) से भूषित कामिनियाँ नाच रही थीं और इसी प्रकार जब पाँच रात-दिन व्यतीत हो गयेघत्ता- उसके बाद मधुमथन ने राजकुल में दोनों का छट्ठी जागरण (का उत्सव) कराया तथा (उसी दिन)
गणकों द्वारा सुललित भुजा वाले रूपिणी और सत्यभामा के पुत्रों के नाम धराये ।। 49 ।।
रूपिणी-पुत्र प्रद्युम्न का धूमकेतु नामक दानव द्वारा अपहरण गाथा- ग्रन्थों के अर्थ जानने वाले गणकों के द्वारा रूपिणी के पुत्र का नाम प्रद्युम्न तथा सत्यभामा के पुत्र
का नाम भानु रचा (रवा) गया ।। छ।। सत्यभामा और रूपिणी के घरों में उत्तम मंगल गीत हो रहे थे। छज्जे सुन्दर रूप से सजाये गये। मदोन्मत्त गज बँधे हुए थे। गुंथी हुई पुष्प-मालाएँ भृगों के संग से सुन्दर लग रही थीं। जब आधी रात व्यतीत हुई और
(13) 2. ५ "य। (14) I. | 24x7 . अशा ।
(13) (2) ईश्वरेग विष्णुना । (3) पंचदिनानिगता। (14) (I) जालागवाक्षे : (2) इस्तिन. ।