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3.12.6]
महाकद सिंह विरइउ पज्जण्णचरिउ
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भज्जइ व मज्झु तं थंभु कि उ कि तेण वयं 'सुटिहि धरिउ। एक्कहि मसिणूरय मणहरण सुललिय-जंघउ कोमल-चरण
एक्कहिं सुदित्त-गह भंति-णबि अण्णहिं तल-चलण रत्त-छवि । पत्ता- दुणिवि राणियउँ सुवियाणियउँ) वरगब्भहिं णिरु सच्च्यउ। को-वण्णहु तरइ णियमणे धरइ केवलि-तित्थयरहो मायउ ।। 47।।
(12) गाहा– गडभेण णारियाणं रूविणि सच्चाण 'कमल-वय णाई।
गंदा तण निमसा सीमिति' जाइ धवला. ।। छ।। अइतुंग पी-पीवर-घणाह कसणइँ मुहाई दुज्जण थणाहँ। संजयाइँ णिवडण भएण जाम किय गब्भ-सुद्धि दोहपि ताम। फल-कुसुम-विलेवण चारु सब्ब दोहलय' विविह-आयार-पुव। सुह-दिणे सुमुहुत्तें सुरिक्ख-जोइ जामिणि-विरामे जण-भुत्ति भोए ।
यही सोच कर) क्या विधि ने दूसरा (रानी रूपी) रूय-स्तम्भ भली-भाँति निर्मित किया है? एक रानी का मनोहर मसूण (चिक्कण) उरु था तो दूसरी का सुललित उरु। उन दोनों के चरण अत्यन्त कोमल थे। एक ग़नी के नख सुदीप्त थे। इसमें कोई भ्रान्ति नहीं। अन्य दूसरी रानी के चरण-ता रक्त छवि वाले थे। घत्ता-. (व) दोनों ही रानियाँ (बड़ी) सुविचक्षण थीं। उत्तम गर्भ के कारण वे सुन्दर कान्तिवाली हो गयीं।
उनका वर्णन करने में कौन तर (पार पा) सकता है? तीर्थकर की माता को अपने मन में धारण; करने वाली में दोनों रानियाँ ऐसी प्रतीत होती थीं, मानों तीर्थंकर की माता ही हों ।। 471।
संयोग से रूपिणी एवं सत्यभामा दोनों को ही पुत्र-रत्न की प्राप्ति होती है किन्तु विष्णु को
रूपिणी के पुत्र-प्राप्ति की सूचना सर्वप्रथम मिलती है गाथा- गर्भ के भार से रूपिणी एवं सत्यभामा दोनों नारियों के कमल समान मुख ईषत्-ईषत् धवल (पाण्डर)
हो गये। मानों वे अपने (गर्भस्य) नन्दनों के (भावी) यश से ही विकसित हो गयी हों ।। छ ।। ___ जिस प्रकार दुर्जन-जनों के मुख कृष्ण वर्ण के (फीके छायारहित) हो जाते हैं उसी प्रकार अति-तुंग पीन पीचर (कठोर) एवं घने स्तनों के मुख भी कृष्ण-वर्ण के हो गये। वे दुर्जनों के समान स्तन अपने पतन के भय से जब कृष्ण हो गये तब दोनों की गर्भ-सृष्टि-शुद्धि-संस्कार किया गया। श्रेष्ठ फल एवं पुष्पों का वार पद्धति से सर्वांग विलेपन कर विविध आचार-पूर्वक दोहले पूर्ण किये गये।
शुभ दिवस, शुभ मुहूर्त तथा शुभ नक्षत्र के योग में यामिनी के विराम-काल में. जनमुक्ति काल में सत्यभामा
(II) विमा : (1211|| स्तोव स्तोक!
(12)1-2. अ. वयग कमलाई। 3. अ णंदपह।
4... दि।5.अई।