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________________ 50] महाकद सिंह बिसाउ पज्जुण्णचरिउ [3.10.16 ते चरम तणु सिद्धिहि गमणु। पावंति पुणु तह तुट्ठ मणु। एत्ता- जे सुर संभत्रिय सग्गहो चविय ते बेवि सच्चरूविणिहिमि । उव रहँ अवयरिय अमर वि तुरिय ते सुय दि ताहें दुहुँ जाणिहिमि ।। 46।। (11) गाहा– तेणं सुकेय भीसम-सुयाण कुबलप-मुणाल- ललियाई । गब्भहिं सुंदरीहिमि जायाइमि सालसंगा।। छ।। एक्कहि वयणुल्लउ णिरुवाउँ अणेक्कहि छण-सस'हर-समउँ । एक्कहि मुहुँ सरलु पुणु" णयणु अणेक्कहि उक्कोइय मयणु। एक्कहि वरकंडु कम्बु हणइ अणेक्कहि रूउ जि जगु जिणइ । एक्फहि वेल्लहलु बाहु-जुवलु। अण्णहे मालइ-माला पवलु । एक्की मि, यम-मोहीम अपणइँ णं कणय-कलस घरिया । एक्कहि तुच्छेयरु णाहि-गहर अण्णहे रोमावलि थंभु किर। किउ विहिणा) एक्कहे गोरियहे अणेक्कहे मुणि-मण चोरियो । जो थरम शरीरी सिद्धि (मुक्ति) को गमन करने वाले होंगे। यह सुनकर वे रानियाँ मन में सन्तुष्ट हुईं। घत्ता- दोनों देव, जो स्वर्ग में उत्पन्न हुए थे, वे दोनों ही वहाँ से चलकर तत्काल ही सत्यभामा और रूपिपणी के गर्भ में अवतरित होकर उन दोनों के पुत्र के रूप में जन्म लेंगे।। 46 ।। (11) रूपिणी एवं सत्यभामा के गर्भ-काल का वर्णन गाथा- उस गर्भ से सुकेत-सुता -- सत्यभामा और भीष्म-सुता – रूपिणी के कुवलय के मृणाल समान ललित-अंग सालस (आलस्य सहित) हो गए।। छ।। एक रानी का वदन निरुपम हो गया, अन्य दूसरी रानी का वदन शशधर-चन्द्र समान हो गया। एक के मुख में सरलपूर्ण नेत्र थे, तो दूसरी के नेत्र उत्कोरित मदन वाले हो गये। एक रानी का उत्तम कण्ठ था, जो कम्बु (शंख) को हनता था—जीतता था, तो दूसरी का रूप जगत् को जीतने वाला था। एक रानी के बाहु युगल वेलफल-लता के समान सुशोभित थे, तो दूसरी रानी के माला प्रबल बाहु-युगलमाला के समान सुशोभित थे। एक रानी के अत्यन्त सघन पयोधर घे तो दूसरी रानी के स्तन ऐसे दिखाई देते थे मानों भरे हुए सुवर्ण-कलश ही हो। एक रत्नी का नाभि गह्वर (रत-गढा) तुच्छेतर विशाल था तो अन्य दूसरी रानी की नाभि रोमावलि के लिये मानों निश्चल स्तम्भ ही थी। विधि ने एक रानी का रूप गौर-वर्ण बनाया था जब कि अन्य दूसरी रानी का रूप मुनियों के मन को चुराने वाला निर्मित किया था। “मेरा वह रानी रूपी एक रूप-स्तम्भ टूट जायगा 110) .. । "IATE: 2 (10) 127 प्रथम बात । (II) ( सरलपूर्णनेक । (2) विधिना ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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