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महाकह सिंह बिरहज पवण्याचरिउ
[3.9.7
कुसुमालु व जित्त महाहवेण
छोडिवि वाइउ सो माहवेण। तुम्हहँ सुर जइ संभवइ कोइ अम्हहँ वि कहव वरदुहिय होइ । सा परिणेविय हरि तव सुएण वेल्लहल पवर दीहर-भुएण। अह अम्हहँ सुउ तुम्हहँ वि दुहिय परिणे सइ णव-कंदोट -मुहिय' । पशियल्लिड कडे जाग गय लेहाए णिय-पुरउ ताम । एत्यंतरे जंपइ सच्चहाव
मुहि-महुरहे अइणिरु दुट्ठभाव। णिसुणहिं हरि सुणि बलहद्ददेव ण र-खयर-रक्खए" विय पायसेव। हउँ दमिय जाइ "कय-कवड-विज्ज एवहि रूवए सहु इह पयज्ज। होएसइ जाहि पहिल्ल पुत्तु जं करइ कहमि इयरहिं णिरुतु । सिरु मुंडेवि तहि परिणहमि जंतु वर केस-कलावहिं पय ठवंतु ।
भीसम-सुयाइँ ता चविउ वयणु आयहो वयणहो परिमाणु कवणु। घत्ता- भणइ सुकेय-सुय विल्लहल-भुय बलहद्ददेव आयण्णहो ।
बहु ण कुणंतियहे भज्जंतियहे पडउ'' तुम्हि "एउ मणहो।। 45 ।।
जीता गया था, उसी प्रकार बड़े उत्साह से जीता गया वह लेख था। उस लेख को छोड़ कर माधव ने (इस प्रकार) बाँचा – यदि तुम्हारे कोई पुत्र जन्मे और हमारी पुत्री जन्मे, तो हे हरि, तुम्हारा सुन्दर लता के समान श्रेष्ठ दीर्घभुजा वाला पुत्र हमारी पुत्री को परणेगा। अथवा, यदि हमारा पुत्र जन्मे और तुम्हारी पुत्री तो हमारा पुत्र तुम्हारी नवकमल मुखी पुत्री को परणेगा।" तब श्रीकृष्ण ने दुर्योधन राजा के इस कथन को स्वीकार कर लिया
और लेखधारी पुरुष लेख लेकर निजपुर को चला गया। इसी बीच में सत्यभामा बोली--"नरश्रेष्ठों एवं पक्षों द्वारा सेवित चरण-कमल हे हरि, मुख में मधुर किन्तु हृदय में अत्यन्त दुष्ट भाव वाले हे हरि, तुम सुनो। हे बलभद्रदेव तुम भी सुनो—"कपट-विद्या द्वारा मैं दमी (छली) गयी हूँ। अत: अब रूपिणी के साथ मेरी यह प्रतिज्ञा है कि-"जिसको भी पहिला पुत्र उत्पन्न होगा, वह जैसे भी होगा, दूसरी का शिर-मुण्डन करा देगी और वह पुत्र विवाह के लिये जाते समय उस केशकलाप पर पैर रखता हुआ ही जायगा।" भीष्म-पुत्री ने तब (यह सुन कर) कहा-"इस प्रतिज्ञा वचन का प्रमाण (साक्षी) कौन होगा?" घत्ता- तब सुकेतसुता ने कहा—“बिल्वफल भुजा वाले हे बलभद्र देव, तुम्ही साक्षी हो। कोई बहू इस प्रतिज्ञा
को भंग न करेगी। यदि करेगी तो तुम ही बीच में पड़ना। ऐसा मानो।। 45।।
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जया । (4) विदाहणिमित गन् । (5) स्लासीभूतः ।
(9) 4. अ. वर। 5.4 'ए। 6-7. कोकण मुहिय। 8. अ. "।
9-10. अ. परवरयक्वए'।।. अ. "ह दि; 12. अप।