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________________ 3.9.6] महाफद सिंह विरइज पज्जष्णचरिउ [47 हरी मज्झु भत्तो सया होउ रत्तो। तहो अण्ण णारी ण रुच्चेउ सारी। तउ हास जुत्तो वसूएव - पुत्तो वणे तम्म खिप्पा पदंसेइ अप्य 1 पत्ता- स पढमवि धणिय तिणि तहि भणिय वियसिग- पंकय-हिरहे 1. जं चलणहि पडिय तुहूं कि खुडिय रूविणिहि वि भीसम-दुहियहे ।। 44।। गाहा ... ता चवइ सच्चहामा होवि विलक्विवि चित्तु धीरती। मइणिय सस गउरविया ता भई तुझु रे कीस ।। छ।। इय विविह विणोयहि तहिं रमंतु णंदणवणि जल-कीला कुणतु । गय दिपहँ ण जाणइ कण्हु जाम 'दुज्जोहण-राएँ लेहु ताम । पेसिउ सो वण्ण-विचित्त सास कसवउव्व वहु-रेह-फास । वग्गाहिट आसवार भोज्जुव विचित्तु विजण" स फारु । रहे. उसे अन्य समस्त श्रेष्ठ नारियाँ न रुकें। तभी वसुदेव का पुत्र हरि हँसता हुआ तत्काल ही वहाँ आया और अपने को उसे प्रदर्शित कर दिया। और– घत्ता उस (विष्णु) ने अपनी विकसित पंकजमुखी प्रथम धन्या-पत्नी सत्यभामा से कहा- भीष्मसुता - रूपिणी के चरणों में पड़कर तूने कैसा खोटा काम कर दिया?" || 44।। रूपिणी सत्यभामा की प्रतिज्ञा स्वीकार करती है कि उन दोनों में से जिसे सर्वप्रथम पुत्र उत्पन्न होगा, वह दूसरी का सिर मुडवा देगी गाथा— हरि का कथन सुन कर मन में बिलखती हुई तथा विचित्र रूप से (ऊपरी) धीरज धारण करती हुई वह सत्यभामा बोली---"मैंने अपनी बहिन को गौरव दिया । सो भला ही किया है। किन्तु, रे कृष्ण तुझे इससे क्या? ।। छ।। इस प्रकार विविध विनोदों से वह वहाँ रमण करता हुआ नन्दन-वन में जल कीडाएँ किया करता था। कष्ण ने जब व्यतीत होते हुए दिनों को नहीं जाना तभी दुर्योधन राजा ने एक लेख भेजा। वह लेख सुवर्ण के वर्गों से विचित्र एवं विशाल था। जो अनेक रेखाओं से विस्तृत कषबट्ट (कसौटी) के समान था। वर्गो से अधिष्ठित वह ऐसा प्रतीत होता था मानों अश्वबल ही हो अर्थात जिस प्रकार घोडों की सेना कई वर्गों से यक्त होती है उसी प्रकार वह लेख भी कवर्ग आदि वर्गों से युक्त था)। जिस प्रकार भोज व्यंजनों (शाक आदि) से विचित्र होता है उसी प्रकार वह लेख भी विचित्र व्यंजनाक्षरों से भूषित विचित्र विशाल था, जिस प्रकार कुसुमाल महायुद्ध से (8) 8. अ. ग। 1997 1-2. अ. हविगपुर' (8) [6) शीशेन। (?) तेन विष्णुना। 19911) अ. ? तपय सापि वागं पक्षे सवा 1121 अनविजन च। ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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