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________________ 3.1.10] महाकद सिंह विराउ पज्जुण्णचरिउ [45 घत्ता- ता सच्चइँ भणिउ मइँ कहि" मुणिउँ रूविणिहे रूब दिक्खालहि। ता हरि चवइ पिए पुर-कमल-सिए णिय उववणहिं णिहालहि ।। 42 ।। गाहा- इय जंपिऊण सहसा रूविणि-णिलयस्स गयज महमहणे। ___ सा भणिय तेण सुंदरि सुभयर कुणहि सिंगार"।। छ ।। तं तहि काऊण सयत्थै संचालिय रूविणि सिरिवत्थें (4)। जहिं कल-केलि-मणिस-पुष्फलि घण अंब-कयंव-जंबु-रिद्धिजन ।। तिलय-लवंग-वउल-करवंदहिं चंपय-देवदारु मचकुंदहिं। कुलु-कुलंत कोइल कल-संदहि जहिं अलि मिलिय कुसुम-मयरंदहि । तहिं उववणे असोय-तरुवर-तले भीसम-सुय वरफलिह-सिलायले। भणइ विदछु खणु तुहु इह अच्छहि अणमिस-दिठ्ठिए वावि णियच्छहि । पुणु अप्पुणु गउ सच्चहिं मंदिर भणिय जाहि णियवणु मण-सुंदरु । हउँ रूविणि हक्कारिवि आवमि णिय णव-वहु पुणु तुह दरिसावमि। घत्ता.. तब सत्यभामा बोली "मैं क्या जानूँ। आप मुझे उसका रूप दिखाइए ।" तब हरि ने कहा "हे श्रेष्ठ कमल के समान हृदय वाली प्रिये, अपने उपवन में देखना।" ।। 42 ।। सत्यभामा उपवन में रूपिणी से मिलने जाती है गाथा- ऐसा कहकर वह मधुमथन सहसा ही रूपिणी के निलय को गये और उन्होंने उस रूपिणी से कहा हे - सुन्दरि, तुम शुभ्रतर शृंगार करो (अर्थात् शुभ्र वेश-भूषा धारण कर तैयार रहो) ।। छ।। श्रीवत्स विष्णु शुभ्र शृंगार कराके रूपिणी को वहाँ ले गये, जहाँ कंकेलि (अशोक) कल (मधुर) केलि (केला) फणिस (पनस) आदि फल और पुष्पवाले घने वृक्ष तथा आम, कदम्ब, जम्बू, ऋद्धांजन. तिलक, लवंग, वकुल. करवंद (करौंदा), चम्पक, देवदारु, मचकुन्दों के वृक्ष थे। जहाँ कुलकुलाती कोयलों के मधुर शब्द हो रहे थे, जहाँ अलि कुसुमों की मकरन्दों से मिल रहे थे (अर्थात् मंडरा रहे थे)। उस उपवन में अशोक वृक्ष के तले उत्तम स्फटिक की शिलातल पर हरि ने भीष्म-सुता - रूपिणी से कहा – कुछ क्षण तुम यहाँ बैठो और अनिमित्र दृष्टि से (पलकरहित टकटकी लगाकर) ही देखो। पुनः वह स्वयं सत्यभामा के भवन में गया और बोला—"अपने मन को सुन्दर लगने वाले वन में जाओ वहाँ मैं अपनी नव-वधु रूपिणी को बुलाकर लाता हूँ और उसे दिखाता हूँ।" 169 (2) गतः। (10 (1) गृहस (2) देतवस्त्रं 07 सिंगारं। (4) विशुन।। (7) | अ. 'दछ । 2. अ. ' 3.4 दु' 4-5.3 दुई इज्याए ।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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