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________________ 401 पताका सिंह विण्डा पञ्जुण्णर्चारत 13.1.12 घत्ता . लय-मंडवे गधरे आणंदसरे इल्ल-जाइ-गचकुंदन । बलहछु चि बरहो तो बहुबरहो स हत्थई चंदणु बंदई ।। 37 ।। गाहा कप्पूरायर-भयरंद-वासिए तत्थ तम्मेलय-भवणे । रयलीला भुंजित्ता संचल्लिउ पुणु वि महुभहणे।। छ।। पुरि-धारमइहिं जाम पराइय ता सवडंमुह सयल वि आइय । णर-णरवइ गायर-जणु मिलियन पुर-परियणु वि सहरिसइँ चलियउ । रच्छाच्छोह भमाडिय पटणे अरि-णरणाह सेण्णदनु वद टणे। तूर-णिणारई किंपि ण सुम्मई गारिहिं उच्छ्याहं जहिं गम्म.''। णिणि सिसुष्णलु रणंगणे वहियउ सो णारायणु रूविणि सहियउ। परमोच्छाहई णयरे पदसइ अण्ण अण्णहो जुबइहिं सीसइ । कावि णारि तंबोलहु भुल्लिय जिम्माय 'लहु आमलय मुहुल्लिय। का वि धुसिणे अंजिय-णपण' अंजणेण पीयल पुणु वयण। काइँ वि डिंभु चडाविउ कड़ियले सिर विचरीउ करिवि पयउरमले। रोवंतहो थण चलणहि लावई जपइ पेक्यु-पेक्षु हरि आवइ । घत्ता... आनन्दकारी बेला, जाति (जुही) एवं मचकुन्द पुष्पों से सुशोभित बलभद्र ने उन श्रेष्ठ वधु-वर को अपने हाथ से चन्दन एवं वन्दन प्रदान किया ।। 37|| हरि - नारायण का द्वारामती में प्रवेश । नगर की विह्वल युवतियों का वर्णन गाथा- कर्पूर-अगर की मकरन्द से वासित उस लता भवन में रति-क्रीड़ा भोग कर वह मधुभधन पुन. वहाँ से चल दिया।। छ।।। जब द्वारावती पुरी में लौटा तो सभी लोग उसके सम्मुख आ रहे थे। मनुष्य, राजा और नागरजन तथा नारी के अन्य परिजन भी हर्ष सहित मिलने चले। पट्टन में शत्रु राजाओं की सेना का मर्दन करने वाली सुरक्षित अक्षौहिणी सेना को घुमाया गया। तूरों के निनादों से कुछ भी सुगाई नहीं पड़ता था। नारियाँ भी बड़े उत्साह के साथ वहाँ गमन कर रही थीं। जिसने रणांगण में शिशुपाल का वध किया था. रूपिणी सहित उस नारायण ने परमोत्साह से नगर में प्रवेश किया। युवतियाँ एक दूसरे को (संकेत से) उसे दिखाने लगीं। कोई नारी ताम्बूल भूलकर बहुत आमलों को मुख में डाल कर निकली, किसी नारी ने धुस (पिसे हुए चिकने चंदन) को नयनों में आँज लिया। पुन: अंजन से अपने मुख को पोत लिया। कोई युवती अपने शिशु के पैर ऊपर एवं सिर नीचे कि? हुा ही उसे अपने कटि 'माग में चढ़ाकर भाग खड़ी हुई और उस रोते हुए बालक के चरणों को स्तन सो लगाने लगी और दूसरी नारियों से बोलने लगी कि देखो देखो हरि आ रहा है। 121 | चन 12911 म्यते 12 मान प्रविः यानेलपन्न
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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