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3.1.11]
महाका सिंह विराउ पज्जुण्णचरिउ
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तीउ संधी
गाहा– तिपिण वि चल्लियइँ गंजोल्लियाँ हरि-बलु रूविणि लहो ठायहो।
देसहु प'हसीय मुहहिं सोरठहो णिरु बिक्खायहो।। छ।। रहम्मि) तुरंगम खेडिय जाम मणेणं) पहंजण) - वेएण ताम। णियंतइ गामाराम - पुराई गिरी णयरं पि इंतई ताई। जहि कलकेलि-लवंग-पियंग सचंदण-दक्ख-कयंब-विहंग। सहारस कोहल-सद्दवमालु
सरोवर ताल-तमाल-विसातु । लयाहरु तत्थ मणोहरु दिछु रई-रस-लोलु सहेण ण विदछु। पयंपिउ रूविणि तेण मयच्छि महु-मुहु अज्जु मुहुत्त पयच्छि । तहिं पिहुयासणु सक्खि करेवि विवर्महेय हत्थइँ हत्थु धरेवि। कियउ कलयंठिवि मंगलचारु झुणेइ अलीउलु गेउ सुसार। सिहंडि पणच्चिय णिहु रसालु पढ़ति सुकीरवि कव'6)-*वमातु।
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तीसरी सन्धि
(1)
सौराष्ट्र के मार्गवर्ती एक लतागृह में विष्णु ने रूपिणी से
अग्नि की साक्षी पूर्वक पाणिग्रहण कर लिया गाधा— तीनों हरि, बलदेव और रूपिणी रथ में बैठ कर गंजोलते (हंसी मज़ाक करते हुए चल दिये और मार्ग
__ में ठहरते हुए वे अति-विख्यात सोरठ देश की ओर चले।। छ।। जब रथ में जुते हुए घोड़ों को खेदा, तो वे मन एवं पवन के वेग से चले। वे तीनों ही ग्राम, आराम (उद्यान) पुरों, पर्वतों और नगरों का प्रेक्षण करते हुए आगे बढ़ रहे थे। ____ जहाँ सुन्दर केलि (केला), कंकेलि (अशोक), लौंग, प्रियंगु, चन्दन सहित द्राक्षा. कदम्ब, विडंग, सहारस (सहकार आम) के वृक्ष देखें, जिन पर कोयलें मधुर शब्द कर रही थीं। विशाल सरोवर तथा विशाल ताल एवं तमाल वृक्ष भी देखे। वहाँ उन्होंने एक विशाल लताघर भी देखा (जिसे देखकर) रति रस में लोल वह विष्णु रति को नहीं सहन कर सका। अत: उसने रूपिणी से कहा—"हे मृगाक्षि, आज (अब) मेरे मुख की मुहुर्त भर प्रतीक्षा तो कर ।' उसी समय वहाँ अग्नि को साक्षी कर हाथ पर हाथ रखकर विवाह कर लिया—पाणिग्रहण कर लिया। कलयण्ठी कोकिलों ने मंगलाचार किये, अलिकुल भ्रमर सुसार गीतों की ध्वनि करने लगे। शिखण्डी—मयूर रसाल नृत्य करने लगे और शुकी—कीर भी काव्यमाला पढ़ने लगे।
(1) 1.ब
सम्मुलद। 2. अ "हा3. अ "प। 4.ब.x|
(I) (1) रथविषये। (2) मनोबेगेन । (3) वायुवेगेन । (4) मम मुख ।
15) अग्गि। (6) कोलाहलु।