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2.19.17]
महाकर सिह विरहन पनुमणचरित
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गुणु चेईवई)
दुवई. हरि-सिसुपाल भिडिय जहि विपिण वि णहे पेच्छति सुरवरा ।
एक्कहो एक्कु णवइ उह'दृइ बिहिमि वहति बक्खरा । । छ।। तो सिसुपालाएँ ..
अ मिट करा हरि पच्चारिउ
अइपिरु वारिउ"। अरे गोवालय
वण्णइँ कालय। एह सोमालिय
भीसम-वालिय लेविणु चल्लिउ
मुह सरु सल्लिउ। मरहि णिस्तर
वल-संजुतः। तो हरि जंपिउ
रोसइँ कपिउ। रूविणि वेसई
अज्जु विसेस.। मिच्चु पढुक्किय
बिहिणा मुक्किय। साडिय वाहहें
सउ-अवराहह । जं मई खमियाउ
रोसे दमियाउ।
गयवरु चोदई संकिङ रहवरे
हउ सेल्लइ हरि। पत्ता ... महुमहणेण रहंगु घुडुरंतु तहो मोक्का। कालचक्कु कंठवें णं सिसुगालहो हुक्काउ ।। 35।।
(19) तुमुल युद्ध : मधुमथन शिशुपाल पर रथांग-चक्र छोड़ता है द्विपदी- जब हरि शिशुपाल दोनों ही भिड रहे थे, तब आकाश में सुरवर देख रहे थे। एक से एक लड़ रहे थे। कोई नहीं पीछे हटते थे। दोनों ही बख्तर (लौह-कवच) धारण किये हुए थे।। छ।। ____ भयंकर भूकुटि वाले शिशुपाल ने हरि को अत्यन्त कर्कश वचनों द्वार। फटकारा और बोला—"अरे गोपालक, वर्ण से काले, राजा भीष्म की इस सुकुमार बालिका को लेकर चल दिया और मुझे बापा चुभो दिया । बल संयुक्त अब तू मर ।"
तब रोष से काँपते हुए हरि ने कहा -..." रूपिणी के वेश में विधि द्वारा विशेष रूप से छोड़ी हुई तेरी निश्चय ही आज मृत्यु आ चुकी है। याद रख कि मैं वही कृष्ण हूँ जिसने द्रौपदी की साडी खींचने वाले अपराधी 100 कौरवों को भी क्षमा कर अपना वोध दाब लिया था।"
पुनचेदिपति शिशुपाल ने गजवर को प्रेरित किया। रथवर में संस्थित हरि ने भी घोड़ों को प्रेरित किया। पत्ता--- मधुमथन ने रथांग-चक्र को धुमाकर शिशुपाल के ऊपर छोड़ा। वह ऐसा प्रतीत होता था मानों
काल-चक्र ही उसके कण्ठान पर पड़ा हो ।। 35 ।।
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(14) ||: पवने । सोया शिरापन । प्रति।