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महाका सिंह विरइउ पञ्जुण्णचरित
[2.10.3
अलिउल तमाल णिहु अइ सफारु वरहिण कलाउ णं चिहर-भारु ! सव्वंगहि-सव्व-सुलक्खणाहे पडिलेवि रूउ मुणि चलिउ ताहे। जो सच्चहाव कोहेण-तत्तु
णिमि सिद्धइँ पुरि वारम इँ पत्तु। कालिदिहि दहे कालियहो दमशु गोवियण-पियारउ गण्ड-दमणु । जरसिंधु-कंस-चंदक्क राहु दिल कयणासणे पउमणाहु। बलहद्द सहिउ सो सहइ केम मरगय-मणि मुत्तिउ मिलिउ जेम। णारउ पेछिवि
दोहिमि पणघिउ पय अग्धु घिववि । संतोसेण सिंहासणे दइछु
कर-मउलिवि पुणु संचवइ विदछु। छत्ता- कहि होए-विणु आगमणु एउ परमेसर कहहि महु। मुणिणा तं णिसुणेवि पडु वि पछिउ तासु लहु ।। 26 ।।
(11) दुवई- रूविणि रूउ णिएवि पारायणु मयण सरेहि सल्लिउ ।
__भूगोयरि कि खेपरि-किण्णारि कि गंधवि वोल्लिउ ।। छ।।
पायाल कण्ण किं सुरकुमारि कि लच्छि किण्णु गंधारि गोरि। उसके चिकुरभार (केश) अलि-कुल के समान अत्यन्त काले एवं तमाल के समक्ष अत्यन्त विस्तृत थे। वे ऐसे प्रतीत होते थे मानों मोर के पुच्छकलाप ही हों। इस प्रकार उस सुलक्षणा के समस्त अंगों के रूप-पट को लेकर वह मुनि चल दिया जो सत्यभामा के प्रति क्रोध से तप्त था – वह नारद मुनि निमिष मात्र में ही द्वारावतीपुरी में पहुँचा और (वहाँ राजकुल में पहुँच कर) कालिन्दी (यमुना) के द्रह में कालियानाग का दमन करने वाले. गोपीजनों के प्यारे, गरुड़ का दमन करने वाले, परासन्ध और कंस के चन्द्र और सूर्य के लिए राहु के समान शत्रु पद्मनाभ नारायण (कृष्ण) को कनकासन पर देखा। बलभद्र सहित वह पद्मनाभ किस प्रकार सुशोभित था? ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार मरकत-मणि मोतियों से मिल कर सुशोभित होता है। नारद को देखकर सिंहासन छोड़कर दोनों ने चरणों में अर्घ दे कर प्रणाम किया, सन्तोष से सिंहासन पर बैठाया और दोनों हाथ मुकुलित कर विष्णु ने कहा .. पत्ता- हे परमेश्वर, इस प्रकार (बिना अवसरके) कहाँ से आगमन हुआ? मुझसे कहिए। मुनिराज ने उनके
वचन सुन कर उन्हें शीघ्र ही उस कन्या का वह चित्र-पट समर्पित कर दिया।। 261।
रूपिणी के सौन्दर्य से काम-पीड़ित होकर नारायण कृष्ण नारद से उसका परिचय पूछते हैं द्विपदी-- रूपिणी के रूप को देखकर नारायण – कृष्ण मदनबाणों से शल्य-युक्त हो गया और अपने मन ही। मन में बड़बड़ामे लगा कि क्या यह कन्या भूमि-गोचरी है अथवा खेचरी किन्नरी है, अथवा गन्धर्व कन्या।। छ।।
"क्या यह पाताल (नाग) कन्या है अथवा सुरकुमारी, यह लक्ष्मी है अथवा गांधारी या गौरी? क्या यह बुद्धि
(10) (1)नार
(10) 4. ब. 'वि। 5. अ. सरें। .. अ. 411. अ. ५। 8. अहि । (11) 1. अ. ।