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2.10.2]
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महाकर सिंह विरइड पज्जुष्णचरिउ
तुपवर चरण- - "कंति गूढ - गुइँ तहि वालिया हें पय-जुयल' खोणि' र णेउरेहिं उरु स्वंभई'' रइहरहँ भाइँ अइ वियद रमणि मज्झम्मि तुच्छि उत्तुंगहि पीण - पऊहरेहिं मा कहिमि कुणेसहो मणिअ तोसु घत्ता — सरल मुणाल भुवाहे () जसु अवला सु हत्तयहि अलंकारिउ गलकंदलु तहे
मणि दिलिए उड्डु - गण तिति । कयली - कंदल सोभालियाहे । पोमाइड जंधाजुयलु तेहिं । मणि- - रसणा तोरणु भरिउ णाइँ । गय-सवणहँ(2) णं उबल(3) मियच्छि । इल बलउ ण सुज्झइ किंपि तेहिं (4)। जइ भज्जइ तो अम्हह ण दोसु 1 ण पुज्जइ । छज्जइ । । 25 ।।
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दुबइ सक्षि सकलंकु क' मलु खेण वियसइ अणुबम वयण पंकयं । अद्धमियंक भालु भजु वलु वि ससहावह सुवंकयं । । छ । ।
नूपुर सहित चरणों की कान्ति ऐसी लिखी गयी कि रक्त कमल उसी प्रकार तिरस्कृत हो गये जिस प्रकार नभोमणि सूर्य की दीप्ति से उडुगण ( तारागण ) तिरस्कृत हो जाते हैं। फिर उस बालिका के गूढ़ गुल्फ (गाउँ) लिखी गयीं। पुनः उस शोभावाली के कदली कंद (स्तम्भ) समान उरु लिखे गये । पद युगल में ध्वनि करते हुए नूपुरों से उसके जंघा युगल पद्मवत् दिखाई दे रहे थे। उसके उर युगल रति गृह के दो स्तम्भों के समान शोभित हो रहे थे। वे ऐसे प्रतीत होते थे मानों मणि की रशना (कटिसूत्र ) रूपी तोरण से भरे हुए (सजे हुए) हों। उसके विकट रमण फलकों के मध्य अत्यन्त तुच्छ कटि थी। उस मृगाक्षी के कानों तक विस्तृत नेत्र ऐसे प्रतीत होते थे मानों कमल-पुष्प ही हों। उस कन्या के पीन - पयोधर इतने उन्नत थे कि उनके कारण पृथिवी का वलय ( शरीर- मण्डल) कुछ भी नहीं सूझता (दिखाई पड़ता ) था । उन (पीन - पयोधरों) को देखकर यदि किसी के मन में असन्तोष हो जाये तो मुझ (कवि ) को लेशमात्र भी उलाहना मत देना और उन (कुचों) के भार से यदि कटि भग्न हो जाये तो भी उसका दोष मुझ (कवि) को मत देना ।
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(9) 5-6 अ. "चल 7. वरं । ४. अ. "लि" । (10) 1. अ. 'क' नहीं है। 2. अ जुलु 3. अ. सकव ।
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यत्ता --- जिस अबला कन्या की भुजाओं की समता सरल मृणाल भी कर पाने में समर्थ नहीं थे। उस रूपिणी का गलकंदल तीन रेखाओं से अलंकृत एवं सुशोभित हो रहा था । । 25
(10)
नारद ने रूपिणी का चित्रपट द्वारावती के राजा पद्मनाभ नारायण (कृष्ण) को समर्पित कर दिया द्विपदी शशि तो कलंक सहित है, कमल तो क्षण में विकसित होता है और मिट जाता है, इसलिए इसका मुखकमल दोनों की उपमा से रहित अनुपम है अर्थात् उस रूपिणी का मुख कमल कलंक रहित और सदा विकसित रहता है। उसका भाल अर्धमृगांक के समान था। उसकी दोनों भौहें स्वभाव से ही अत्यन्त वक्र थीं । । छ । ।
(9) (1) इयै । (2) कर्णयोः । (3) उपलंभट्ट लाहणो | (4) पयोधरे । (5) रुक्मिन्या ।