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________________ 2.6.7] महाका सिंह बिरहज फजुण्णचरित 15 किपि ण बोल्लिज लीलइँ चल्लिउ। दाहिण-मंडलु धरिय कमंडलु। पिछिय सुहत्थर छत्तिय मत्थउ। णयर-णिरंतरे भुवणुभंतरे। तेण भमंत। मयण कयंत। घत्ता— कोइल कलपलु रम्मु सवण सुहावणु जहिं अवरु । जो उववणेहिं गहिरु दीसई कुंडिणपुर पवरु।। 21 ।। (6) दुवई जहिं वेयभणाम सरि-सारिय अमर-तरंगिणी सभा। ___ गिरि-मह सुजड़ कडणु परिसेसेवि कय सायर समागमा 1। छ।। दह-फारहे-सारहे तीरिणिहे तरु-संकडे तहे तडे तीरिणिहे। पाय-वट्टणु-पट्टणु सो वसइ जसुरायहो धायहो रिउ तसइ। अण कलियहो चलियहो णीसमहो अहिहाणहो जाणहो भीसमहो। मंडलियहँ मिलियहं घण-घणउ सोहाउलु राउलु तहो तणउं। सो राणइ माणउ को भणइँ फुडु सत्तिए कतिए को जिण। सब देखकर भी नारद वहाँ कुछ बोला नहीं, लीलापूर्वक वहाँ से कमण्डल लेकर दक्षिण मण्डल की ओर चल दिया। उसके हाथ में पिच्छी थी और माथे पर छत्र । मदन के लिए कृतान्त के समान वह नारद संसार के नगर-नगर में भटकता रहा। घत्ता- इसी क्रम में वह उस कुण्डिनपुर में जा पहुंचा, जो कानों को सुहावने लगनेवाला कोयलों के कल-कल रवों से रम्य एवं सघन उपवनों से सुशोभित देखा जाता है।। 21 ।। कुण्डिनपुर के राजा भीष्म ने नारद को अपने नगर में __प्रवेश करते हुए देखा द्विपदी— उस कुण्डिनपुर में वेदर्भा विदगर्भा) नाम की नदी बहती है, जो अमरतरंगिणी (देवगंगा) के समान है तथा जो महान् पर्वतों को भी उखाड़ती हुई तथा विशाल प्रदेश का सिंचन करती हुई समुद्र में जा गिरती है।। छ।। विस्तृत सरोवरों के लिए सारभूत तथा सघन वृक्षों से युक्त उस वेदर्भा नदी के तट पर न्याय का वर्तन करने वाला वह कुण्डिनपुर नामक प टन बसा हुआ है, जहाँ के राजा के पराक्रम से शत्रुगण त्रस्त बने रहते हैं। उस राजा का नाम भीष्म है। भयानक शत्रु समूह भी जिसके पीछे-पीछे चलते हैं, जिससे माण्डलिक लोग बार-बार मिलते रहते हैं और इस प्रकार जिसका राजकुल सदा सुशोभित बना रहता है। उस राजा के सम्मान का वर्णन कौन कर सकता है? निश्चय ही उसकी शक्ति एवं कान्ति को कौन जीत सकता है? आकाशमामी इन्द्र, चन्द्र एवं
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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