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महाकद सिंह बिरउ पन्जुण्णचरित
(पुफिया) यत्काव्य) चतुराननाद्य निरतं सत्पद्म दातन्वतः स्वैरं भ्राम्यति भूमिभागमखिलं कुन् चलक्षं क्षणात् । तेनेदं प्रकृतं चरित्रमसमं सिद्धेन नाम्ना पर4) प्रद्युम्नस्य सुतस्य कर्ण सुखद: श्री पूर्वदेव द्विषः ।।
पुष्पिका– सर्वज्ञादि के मुख से निर्गत समीचीन पद ही जिस काव्य रूपी शरीर की शोभा है और जो प्रचुर काल तक समस्त भूमि-भाग में स्वच्छन्द रूप से सत्पद्य के रूप में भ्रमण करता आया है उसके आधार पर प्रद्युम्न चरित्र के शीघ्र ही प्रणयन में मैं एक भी क्षण लज्जा का अनुभव नहीं करता हूँ। ___ सिद्ध नाम के उस कवि ने यह कर्ण सुखद अनुपम श्रीपूर्वक देवद्विष् (मधुसूदन श्रीकृष्ण) के पुत्र प्रद्युम्न के चरित्र को प्रकृत – प्रकट किया है।। छ।।
पुष्पिका- 1.3 अन्यतः । 2. अ.x
पुष्पिका
यत्काव्यं कृतं (2) गर्वशमुखारगित । 13 साधीन पद रु पानाम सोभा गात्र 34 काय्यग्य । (4) कानिगा।