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महाकह सिंह विरइज पज्जुण्णचरित
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छत्ता– चाणउर विमद्दणु देवइ णंदणु संख- चक्क-सारंगधर ।
रणे कंस-खयंकरु असुर भयंकर वसुह ति-खंडहिं गहियकरु ।। 12 ।।
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जो दाणव-माणव दलइ दप्पु णव-णव-जोवण सुमणोहरीहिं छण इंद-बिंव-सम वयणियाहिं केयूर-हार-कुंडल-धराहँ पयरक्खोलिक्खल णेउराहँ तह मज्झे सरस तामरस मुहिय सइँ सच सुलक्खण सुस्सहाव" दाडिम कुसुमाहर सुद्ध साम सा अग्गमहिसि तहो सुंदरासु को वषिणवि सक्कइ रिद्धि ताहिं
जिणि गहिय असुर-णर-खयर कप्पु। चक्कल-घण पीणयउ' हरीहिं। कुवलय-दल-दीहर णयणियाहिं। कण-कण कणंत कंकण कराहँ। सोलह सहसइँ अंतेउराहँ। जा विज्जाहरहो सुकेय' दुहिय। णामेण पसिद्धी सच्चहाव। अइवियडु' रमण णिरु मज्झखाम । इंदाणिव सग्गे पुरंदरासु।। सुरणाहु ण पुज्जइ अवसु जाहँ।
घता- देवकी का पुत्र वह मधुमथन (कृष्ण) चाणूरमल्ल का विमर्दन करने वाला, शंख, चक्र एवं शारंग
नामक धनुष का धारी रण में कंस का क्षय करने वाला, असुरों के लिए भयकारक तथा भूमि के तीन खण्डों से कर ग्रहण करने वाला है (अर्थात् वह तीन खण्ड का अधिर्णत नारायण है)।। 12।।
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राजा जनार्दन - कृष्ण का वर्णन जो दानवों और मानवों के दर्प का दलन करता है। जिसने असुर, नर एवं खेचरों की कल्पना को ग्रहण किया है (अथवा जिसने असुरों, नरों एवं खचरों के कल्प का निग्रह किया है)। जिस जनार्दन कृष्ण को प्रसन्न रखने वाली अत्यन्त मनोहरा नवयौवनवाली सुमनोहरी, चक्राकार पीनस्तनों वाली, पूर्णचन्द्र बिम्ब के समान मुखवाली कुवलय (कमल) पत्र के समान दीर्घनेत्रों वाली, केयूर तथा मोती के हार, कुण्डल धारण करने वाली कण-कण की ध्वनि करने वाले कंकण युक्त हाथों वाली, पदों में खल-खल करने वाले नूपुर धारण करने वाली, सोलह सहस्र तरुणी रानियाँ थीं। जो उनके अन्त:पुर में (रणवास में) निवास करती थीं। उन सभी में सरस कमलमुखी तथा विद्याधर सुकेतु की सुप्रसिद्ध एक पुत्री सत्यभामा थी, जो सुलक्षणा एवं उत्तम स्वभाव वाली थी तथा जो दाडिम के समान आभावाली, नव-कुसुम के समान अधरों वाली शुद्ध श्यामा, अत्यन्त विकट नितम्ब वाली थी। जिसका कटि भाग अत्यन्त कृश था। वही सत्यभामा उस सुन्दर हारे की (कृष्ण की) अग्रमहिन्धी (पट्टरानी) हुई। वह ऐसी प्रतीत होती थी जैसे स्वर्ग में पुरन्दर (इन्द्र) की इन्द्राणी। उसकी ऋद्धि का वर्णन कौन कर सकता है? सुरनाथ इन्द्र भी उस (वर्णन) में समर्थ नहीं हो सकता।
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(13) (1) काल। 12) |
हाव । (3) सत्य--11।