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महाकड सिंह थिरइज पज्जुण्णचरिउ
उच्छुदाइँ पत्तालंकरिथई लिई 'परि रस - भरिथइँ । जहिं सामलियउ मंथर गमणिउँ हट्टिउ महिसिद्ध वि सु-रमणिउँ । (5) जहिँ गोदिउ गोरतु परिऊसें मंथहिं रुि णवय'ण णिग्घासें । जहिँ जल पाएण' मिसें तिस रहियह पवपालिणि कुल्लात्रिय पहियहिं । धत्ता -- पम सक्कर - भारहिं विविहायारहिं थामि श्रमि 10 भुजिज्जइँ । जहिं तहिं तहो देसही अइ सुविसेत्तहो को " कोण 2 भुवणि रंजिज्जइ । । 7 ।।
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गयणयलहो णिवडर कीरपंति जह पोभरा मरगयइ' भिलिय क्कारतिहिं गहवइ सु आहि घण-यहिं सु-पिहुल- णियंविणीए हलि पेक्खु पेक्खु खज्जति सास इल्लवित पडिक्यणु दिति
जहिँ सहइँ साल- कणिसइँ चुर्णति । हा रावलिणं णह सिरिह घुलिय । वेल्लहल-सरल-कोमल-हुयाहि । जहिं जंपिउ खेत्त-कुर्डुविणीए । करताल" रहिणो दुहिं हयास । तं सुणिवि पहिय जहिं पउ ण दिति ।
(7) 5. '4'। 6. अ. ध। 7483 सः । ५. अटामे 10. समे 11. ॐ कु। 12 अ
(8) अ हें। 2. अ ' । 3. अ भू' ।
रसपूरित इक्षु के वन ( खेत ) हैं । वे ऐसे प्रतीत होते हैं मानों प्रचुर आनन्द रस से भरे हुए राजकुल ही हैं। जिस देश में सुरमणीक श्यामल वर्णवाली मन्दगमन करती रहित हैं। ऐसी प्रतीत होती हैं मानों रमणीय हथिनी ही हों । जिस देश में गोदियाँ ( ग्वालिने) प्रत्यूष काल में निपुण मधुर वचनों के निर्घोषों के साथ (अर्थात् मधुर गीत गाती हुई ) गोरस (दही) को मथतीं हैं। जिस देश में जल प्रपा (प्याऊ ) के बहाने से विशेष स्वरों के साथ पय- पालिनी पथिकों को अपने निकट बुलाती हैं ) ।
घत्ता - जिस देश में ठाम ठाम में नाना प्रकार के जल, दूध, शक्कर के भारों से पथिकों को भोजन कराये जाते हैं। भुवन में ऐसा कौन होगा जो सुविशेष रूप से उस देश से राग नहीं करेगा ? ।। 71
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सोरठ (सौराष्ट्र ) देश की विशेषता
जिस देश में आकाश मार्ग से खेतों पर कीर पंक्ति उड़कर आती है, जो शस्य कनिशों (बालों) को चुनती हुई सुशोभित होती है। वह इस प्रकार होती है मानों पद्मरागमणि की हारावलि नभशिखर से घुल-मिल रही हो । जहाँ गृहपति (किसान) लता के समान सरल एवं सुकोमल भुजाओं वाली पुत्रियों को पुकारा करते हैं, जहाँ कृषकगण पीनस्तनी एवं पृथुल नितम्बवाली क्षेत्र की कुटुम्बिनी ( मालकिन ) से कहते रहते है – हले, हे हे, देखो-देखो, शस्य (धान्य) खाये जा रहे हैं । अरी हताश करताल - ( हाथ की ध्वनि) रहित, तू दुखी नहीं है ? ( अर्थात् धान्य के नष्ट होने का तुझे जरा भी दुःख नहीं है ? ) तब कण तोड़ने वाली नारियाँ उन्हें जो प्रतिवचन ( प्रत्युत्तर) देती हैं, उसे सुन कर पथिक जन जहाँ खेत में पद नहीं देते (अर्थात् वे नारियों कीर पंक्ति को
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(7) (7) मना
(8) पर र