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1.7.6]
महाकद सिंह विरहाउ पज्जुण्णचरित
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अइबित्थरेण पउरु तहो दाहिणि भरहखेत्तु कयउवहिय याहिणि। उलीज) गभाइँ-जम्म कल्लाण जिण-णिक्खवण-णाण-णिव्वाण ।
अणिमिस णाहहो आसणु वेविरुध) चउणिकाय गिव्वाणहिं सेविरु । घत्ता— जण-धण-कण रिद्धउ जगिसुपसिद्धउ तहिं सोरछु णाम विसउ।
दक्खारस पाणहिँ मंडवधाणहिँ जहि 4) पहियहँ छिज्जइ तिसउ ।। 6 ।।
जहिं सरवरि-सरवरि कंदोट्टई परिमल व लहंद अद् सुविसट टइँ । अलि चुंवियइँ सरल-दल-पायणई णं कामवुहिं विलासिणि वयण। कइसेवियइँ सुणीलाराम
वलसि एणहो सारिच्छरे गाम । कण-भरय-णमियाइँ अइसघणइँ जहिँ सकमलई कमतसालि वण. सुप-पैहुण णिहाई) सुसिणिद्ध जहिँ तिणाइँ बहु भंग समिद्धइँ ।
पंडुरण पंडुराई4) सुकइत्तइँ गोहणाइँ णं णहि णक्खत्तइँ।' में समुद्र से प्रदक्षिणा किया हुआ (घिरा हुआ) भरत नामका क्षेत्र है।
जहाँ जिनेन्द्र के गर्भ, जन्म, निष्क्रमण, ज्ञान एवं निर्वाण-कल्याणक सम्पन्न किये जाते हैं। जहाँ (तीर्थकर के जन्म से) अनिमिषा.....देव के नाय इन्द्र के आसन कम्पित होते हैं और जो चारों निकाय के गीर्वाणों (देवों) से (जो भरतक्षेत्र) सेवित है। घत्ता-- जन, धन और कण (अन्न) से ऋद्ध, जगत में सुप्रसिद्ध वहाँ सोरठ नामका एक देश है। द्राक्षा
(अंगूर) रस पीने के मण्डपस्थानों से जहाँ पथिकों की तृषा का क्षय किया जाता है ।। 6।।
सोरठ (सौराष्ट्र) देश का वर्णन जहाँ सरोवर-सरोवर में कमल कन्द (समूह सुशोभित) हैं, जिनसे नि:सृत परिमल सर्वत्र प्रवहमान रहती है। जिन कमलों का अलि (गण) चुम्बन करते रहते हैं, जिनके पत्र रूपी नेत्र सरल हैं, वे (कमल) ऐसे प्रतीत होते है मानों कामदेव की रति-विलासिनी के वदन (मुख) ही हों। उस देश में राम की सेना के समान कपियों (वानरों) द्वारा सेवित सुनील (हरित) वर्ण की वाटिकाएँ हैं, जिनका कविगण भी सेवन किया करते हैं। जिस देश में बलदेव की सेना के समान ग्राम हैं (अर्थात् जिन ग्रामों में वीर पराक्रमी पुरुष निवास करते हैं)। जिस देश में कमल पुष्पों के साथ-साथ धान्य कणों के भार से झुके हुए कलम नामकी शालि (धान) के पौधों के अत्यन्त सघन वन (खेत) हैं। जिस देश में सुग्गे के पंखों के समान अत्यन्त स्निग्ध हरी-हरी घास के खेत हैं, जिन के बार-बार तोड़े (खोटे) जाने पर भी समृद्धि कम नहीं होती। जिस देश में गोधन (गाएँ) पाण्डुर-पाण्डुर वर्ण की हैं और उसी प्रकार प्रतिभासित होती हैं जिस प्रकार आकाश में नक्षत्र । जिस देश में पत्रों से अलंकृत तथा
(6) 2. यदि
16) 12) परिवंसेविरु। (३) करायमानु । (47 देश : 17m I. असे । 2. . हैं। 3. म। 4. अए। (24नीलबग : नीलविद्या राम सेव्यक्त । (21 सुपक्ष सशः । (3)
शुभनि । (4) प्रधानानि ।