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________________ 13.71 महाकह सिंह यिादा गज्जण्णचरित्र णिव-विउस सहे सुह-आणवहे। सरसइ सुसरा महु होउ वरा इम वज्जरई छुडु सिद्धकई। हय-चोर भए णिसि भरि वि कए। पहरद्धि ठिए चिंतंतु हिए। पत्ता- जा सुत्तउ अच्छई ता सहि पेच्छई णारि एक्क मणि हारणिया । सियवच्छ णियच्छिय कंजयहच्छिय अक्ख-सुत्त सुया' धारिणिया।। 2।। सा चवेइ सिव'णति तक्खणे काई सिद्ध चिंतयहि णियमणे। तसुणेवि कइ सिद्ध जंपए मज्झ माइ णिरु हियउ कंपए। कव्व-बुद्धि चिंतंतु लज्जिओ तक्क-छंद-लक्वण विवज्जिओ। णवि समासु ण विहत्ति-कारउ संधि-सुत्त गंथहं असारउ। कब्बु को वि ण कयावि दिउ महु णिहंडु केणवि ण सिट्ठ। 'तेण वहिणि चिंतंतु अच्छमि खुजहो विसाल हलु यच्छमि । अंधु होवि णवणट्ठ पिच्छिरो गेय सुणणि बहिरो वि इच्छिरो। . ग्राम एवं नगर में, नृप एवं विद्वानों की सभा में शुभ आज्ञा को धारण करने वाले कवियों में सरस एवं सुरवरों का संचार करने वाली हे देवि सरस्वती, मुझे वरदान दो। इस प्रकार प्रार्थना कर संयमशील वह सिद्ध कवि रात्रि के अर्ध प्रहर के व्यतीत हो जाने पर चोरों के भए से आहत होकर चिन्तित हृदय जब बैठा था तभी उसे नींद आ गयी और– घत्ता- जब वह सो रहा था, तभी उसने श्वेतवस्त्र धारण किये हुए, हाथों में कमल तथा अक्षसूत्रमाला धारण किये हुए एक मनोहारिणी नारी को (स्वप्न में) देखा।। 2 ।। सरस्वती कवि को स्वप्न में काव्य-रचना की प्रेरणा देती है तत्क्षण ही वह सरस्वती स्वप्न में उस कवि से बोली- हे सिद्ध, अपनेमन में क्या चिन्तन कर रहा है?' यह सुनकर कवि ने उत्तर दिया—'हे माता, मेरा हृदय निरन्तर काँपता रहता है। काव्य-रचना के विषय में विचार करते हुए मेरी बुद्धि लज्जित होती है क्योंकि में तर्क (नाड़ी), छंद (पिंगल), लक्षण (व्याकरण), से विवर्जित (रहित) हूँ। मुझे न समास का ज्ञान है, न विभक्तिकारक ही जानता हूँ। सन्धि-सूत्रों सम्बन्धी ग्रन्थों (व्याकरण) में, मैं (सर्वथा) असार (मूर्ख) हूँ। मैंने कभी भी कोई काव्य देखा तक नहीं। मैंने निघण्टु या कोष भी किसी से नहीं सीखा। इसी कारण हे बहिन, मैं चिन्तन करता हुआ बैठा हूँ। मैं क्षुद्र होकर भी विशाल फल (तोड़ना) (2) 3. अ 'रे। 4.अ "ग"। 5. अ. '। (3) [ अ 'बि । 2. अ “ई। 3. ब मु"। 4. अ. 'मंटु। 5. ब. ते"।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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