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महाका सिंह विरखउ पण्णचरित
[1.1.2
धना— भुवात्तय-सारहो णिल्जय-मारहो अवहेरिय धर-दंदहो ।
उन्जिलगिरि-सिद्धहो णाण-समिझहो दय-वेल्लिहि कल-कदहो।। ।।।
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ure दुरिय रिण भवभय-हरणं
तइलोयग। णिज्जिय करणं।
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पुणु सहमई
कलहंस-गई। वरवण-पमा
मणि धरिवि 'मया। पम-पाणि-मुहा
तोसिय विबुहा। सगगि णिया
बहु संगिणिया 1 पुवाहरणा
सुविसुद्ध-मणा। सुपवर-वमणी
णय-गुण-णायणी 1 कइयण-जणणी
तंदु वि हणणी। मेहा-जणणी
सुह-सय करणी। घर-पुर-पदरे
गामे पयरे। जो भुवनत्रय में नारभूत, कामदेव को निर्जित करने वाले. आत्मद्वन्द को अपहत करने वाले हैं तथा जो ज्ञान-समृद्ध, दया-बेल के कलकन्द स्वरूप हैं, उन ऊर्जयन्तगिरि से सिद्धि को प्राप्त भगवान् नेमि-जिनेश्वर को मैं (कवि) प्रणाम करता हूँ।। } ||
घत्ता-
कवि को श्वेतवसना सरस्वती ने स्वप्न में दर्शन दिया जिनका दुरित रूपी ऋण चुक गया है, जो त्रैलोक्यपति हैं, जो भवभय का हरण करने वाले हैं, जिन्होंने पंचेन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है, तथा जो शुभ-फल की भूमि में उत्पन्न हुए हैं, उन अरहन्तों की मैं वन्दना करता हूँ।
न. कलहंस गामिनि (निश्चयनय से जानी आत्मा में जिसकी गति है तथा व्यवहारनय से कलहंस पर जिसकी गति है वह) श्रेष्स वर्ण एवं पदों वाली (निश्चयनय ने उत्तम वर्णन करने वाले पद हैं जिसमें तथा व्यवहारनय से उत्तम निर्दोष (व्याकरणावद्ध) वर्ण एवं पद जिसमें हैं) उस सरस्वती को भी मन में धारण करता हूँ, जिसके विबुधों को मम्पुष्ट करने वाले पद ही हाथ एवं मुख हैं जो जीव को स्वर्ग (मोक्ष) में ले जाने वाली है. जो अनेक विध प्रतिष्ठा प्राप्त है. चौदह विध पूर्व साहित्य ही जिसका आभरण है. जो विशुद्ध मन वाली है और श्रेष्ठ श्रुतों का वर्णन करने वाली है तथा अपने नय-गुग रूपी नेत्रों में सभी को आनन्दित करने वाली है। जो कविजनों की माता है, जो तन्द्रा का हनन करने वाली है. जो मेधा (बुद्धि) की जननी है, सैकड़ों सुखों को उत्पन्न करने वाली है. उत्तम घर, पुर,
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