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________________ महाकइ सिंह विरइउ पज्जुण्णचरिउ पढमो संधी : :: : खम-दम-जम-णिलयहो तिहुअण-तिलयहो वियलिय-कम्मकनकहो। थुइ करमि संसत्तिए' अइणिरु भत्तिए हरिकुल-गयण-ससंकहो।। छ ।। पणवेप्पिणु णेमिजिणेसरहो भन्वयण-कमल-सर-णेसरहो। भवतरा-उम्मूलण-वारणहो कुसुमसर-पसर विएगवारणहो । कम्मट्ठ-विवक्ख पहजणहो मय-घण पवहंत गहजहो । भुवणत्तय पयडिय सासणहो छत्भेय जीव आसासणहो। णिरवेक्खिणिमोह-णिरंजणहो सिव-सिरि-पुरधि-मणरंजणहो । पर-समय भणिय णय-सप महहो कम-कमल-जुपल य-मय-महह । महिसेसि पदसिय सुप्महहो मरगय-मणि-गण-कर-सुप्पहहो । माणावमाण-सम-भावणहो अणवरय णमंसिण भावगहो । भयवंतहो संतहो पाबणहो सासय-सुह-संपय-पावणहो । प्रद्युम्नचरित पहली सन्धि (1) ऊर्जयन्त-गिरि से सिद्धि को प्राप्त नेमि-जिनेश्वर की स्तुति उत्तम क्षमा. दम (संयम) एवं यम-नियम के निलय स्वरूप, त्रिभुवन के लिए तिलक के समान, कर्म-कलंक से रहित तथा हरि-कुल-गगन के लिए शशांक के समान श्री नेमि-जिनेश्वर की अत्यन्त भक्ति एवं यथाशक्ति स्तुति करता हूँ|| छ।। ___भव्यजन रूपी कमल-सर के लिए सूर्य स्वरूप, भवसरु (संसार रूपी वृक्ष) के उन्मूलन के लिए वारण (गज) के समान. कुसुम-पार (कामदेव) के प्रसार को रोकने में समर्थ, (मोक्ष-मार्ग के विपक्षी ज्ञातावरणादिक अष्टकर्मों के नाशक, अष्टमद रूपी मेघों को उड़ा देने के लिए प्रभंजन के समान, भुवनत्रय में अपने शासन को प्रकट, करने वाले, षट्कायिक जीवों को आश्वासन (रक्षण) देने वाले तथा निरपेक्ष, निर्मोह एवं निरंजन, शिवश्री रूपी पुरन्ध्री (कुलवधू) का मनोरंजन करने वाले तथा जो पर-समय (अन्य ऐकान्तिक मतों में कथित शताधिक कुनणे) का मन्थन करने वाले हैं, जिनके चरण-कमल-युगल शतमख (इन्द्र) द्वारा नमस्कृत हैं, जो महीपतियों के सुमार्ग-दर्शक, मरकत-मणिसमूह की प्रभा के समान प्रभा वाले, मानापमान में सम-विचार वाले तथा भवनवासी देवों द्वारा अनवरत प्रणम्य हैं, जो सन्त, पावन तथा शाश्वत सुख-समृद्धि को प्राप्त है और (1) 1. सु। ..अ 'ने'।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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