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________________ 130] महाकद सिंह विरहाउ पज्जुण्णनरिड 281 282 283 284 285 286 287 289 290 291 292 4. (260) प्रद्युम्न के विवाह हेतु विशिष्ट मण्डप का निर्माण किया गया 5. (261) प्रद्युम्न क: 50 कन्याओं के सास लिक कार्य आराम । इस अवसर पर लगभग 31 देशों के नरेश उपस्थित हुए 6. (262) प्रद्युम्न का वैवाहिक-कार्य प्रारम्भ (विवाह-विधि) (263) प्रद्युम्न के वैवाहिक कार्यक्रम 8. (264) सत्यभामा प्रद्युम्न-विवाह से पराभव अनुभव कर अपने पुत्र भानु का विवाह रत्नचूल की विद्याधर-पुत्री स्वयंप्रभा से कर देती है 9. (265) प्रद्युम्न भोगैश्वर्य का जीवन व्यतीत करने लगता है। सुरेश्वर कैटभ पुण्डरीकणी नगरी में विराजमान सीमन्धर स्वामी के समवशरण में पहुंच कर प्रवचन सुनता है 10. (266) सीमन्धर स्वामी द्वारा मधु एवं कैटभ के पूर्वभव वृत्तान्त कथन 11, (267) अच्युत देव एक मणिमय हार कृष्ण को भेंट करता है 12. (268) जाम्बवती को कामरूप अँगूठी देकर प्रद्युम्न उसे सत्यभामा के रूप के समान बना देता है 13. (269) कृष्ण ऊर्जयन्तगिरि पर मुद्रिका के प्रभाव से सत्यभामा दिखाई देने वाली जाम्बवती को देव-प्रदत्त हार पहिना देते हैं 14. (270) प्रपंच का रहस्य खुलने पर नारायण-कृष्ण आश्चर्यचकित हो उठते हैं। सत्यभामा के साथ वह अपने घर वापिस लौट आते हैं 15. (271) जाम्बवती का पुत्र शम्बुकुमार, सत्यभामा के पुत्र सुभानकुमार को द्यूत-विधि में बुरी तरह पराजित कर देता है 16. (272) मुर्गे की लड़ाई में पराजित कर शम्बु, सुभानु के सुगन्धित द्रव्य को भी अपने विशिष्ट सुगन्धित द्रव्य से नष्ट कर देता है 17. (273) शम्बुकुमार दिव्य-वस्त्रों की प्रतियोगिता में भी सुभानु को पराजित कर देता है 18. (274) घुड़सवारी एवं सैन्य-प्रदर्शन में भी शम्बु, सुभानु को पराजित कर देता है 19, (275) पुत्र सुभानु की पराजय से निराश होकर सत्यभामा उसका मनोबल बढ़ाने के लिए दूसरा उपाय खोजती है 20. (276) अनुन्धरी एवं सुभानु का पाणिसंस्कार 21. (27) राजा रूपकुमार अपनी बहिन रूपिणी द्वारा प्रेषित विवाह-प्रस्ताव को ठुकरा देता है 22. (278) माता-रूपिणी के अपमान से क्रोधित होकर प्रद्युम्न एवं शम्बु डोम का रूप धारण कर कुण्डिनपुर जाते हैं और राजा रूपकुमार से उनकी पुत्रियों के साथ अपने विवाह का प्रस्ताव रखते हैं 23. (279) असह्य अपमान के कारण डोभ वेशी प्रद्युम्न अपनी विद्या के चमत्कार से कुण्डिनपुर को उजाड़ देता है 24. (280) विदग्ध राजा रूपकुमार एवं उसकी दोनों पुत्रियों का प्रद्युम्न एवं शम्बु द्वारा अपहरण 293 296 297 298 299 300 302 303 304
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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