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________________ विषयानुक्रम J131 पन्द्रहवीं सहित 306 307 308 309 310 312 314 316 317 318 319 1. (281) कृष्ण से क्षमा याचना कर रूपकुमार अपनी दोनों पुत्रियों का विवाह प्रद्युम्न एवं शम्बू के साथ कर देता है 2. (282) राजा रूपकुमार प्रसन्नचित्त होकर वापिस लौट जाता है। प्रद्युम्न अपने विमान से सदल-बल क्रीड़ा हेतु निकलता है 3. (283) कामदेव प्रद्युम्न की वसन्त एवं ग्रीष्म-कालीन क्रीड़ाएँ, वसन्त एवं ग्रीष्म ऋतु वर्णन 4. (284) प्रद्युम्न की शरद एवं हेमन्त ऋतु कालीन विविध क्रीड़ाएँ 5. (285) फाल्गुन मास के अठाई-पर्व के आते ही प्रद्युम्न में धर्म-प्रवृत्ति जागृत होती है और ___ वह कैलाश पर्वत के जिनगृहों की वन्दना हेतु वहाँ पहुँचता है 6. (286) प्रद्युम्न कैलाश पर्वत पर चतुर्विंशति जिनेन्द्रों की स्तुति करता है 7. (287) कैलाश पर्वत पर स्थित चौबीसी मन्दिर में प्रद्युम्न द्वारा दश दिक्पालों का स्मरण एवं । जिनेन्द्र का अभिषेक तथा पूजन 8. (288) सुगन्धि, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल एवं शालि द्रव्यों द्वारा पूजा 9. (289) नेमिकुमार को संसार से वैराग्य हो जाता है 10. (290) चतुर्विध ज्ञानधारी नेमिप्रभु द्वारावती के राजा वरदत्त के यहाँ जाकर आहार ग्रहण करते हैं 11. (291) नेमिप्रभु को कैवल्य प्राप्ति एवं धनद द्वारा समवशरण की रचना 12. (292) कृष्ण नेमिप्रभु के समवशरण में जाकर उनका धर्म-प्रवचन सुनते हैं 13. (293) नेमिप्रभु का संघ सहित विहार। उनके आगे-आगे धर्म-चक्र चलता था 14. (294) वनपाल द्वारा सूचना पाते ही कृष्ण सदल-बल रैवतगिरि पर नेमिप्रभु के दर्शनार्थ चल पड़े 15. (295) कृष्ण द्वारा स्तुति। नेमिप्रभु का प्रवचन-जीव-स्वरूप 16. (296) बौद्ध, सांख्य एवं मीमांसकों के जीव-स्वरूप का खण्डन 17. (297) जीव-स्वरूप एवं प्रकार-वर्णन 18. (298) तत्त्व-वर्णन एवं पूर्वभवावलि वर्णन 19. (299) द्वारिका-विनाश सम्बन्धी भविष्यवाणी तथा प्रद्युम्न का वैराग्य 20. (300) प्रद्युम्न नेमिप्रभु से दीक्षा ले लेता है 21. (301) शम्बु, अनिरुद्ध, भानु, सुभानु के साथ-साथ सत्यभामा एवं रूपिणी आदि भी अपनी बहुओं के साथ दीक्षित हो जाती है 22. (302) दीक्षा के बाद अपने संघ सहित वह प्रद्युम्न द्वारावती पहुँच। 23. (303) प्रद्युम्न को ज्ञानत्रय की प्राप्ति 24. (304) घोर तपश्चरण कर प्रद्युम्न ने कर्म प्रकृतियों को नष्ट कर दिया 25. (305) प्रद्युम्न को केवलज्ञान प्राप्त हो गया। इन्द्र ने भाव विभोर होकर उनकी स्तुति की। 320 321 323 324 325 327 328 330 331 334 335 337 339
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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