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________________ विषयानुक्रम | 129 तेरहवीं सन्धित 255 DNA 261 1. (240) रण वर्णन-समरभूमि में दोनों शत्रु सेनाओं के बीच की अन्तर्भूमि की दुखद अवस्था । का कवि द्वारा मार्मिक-चित्रण 2. (241) प्रतिपक्षी सेनाओं का तुमुल-युद्ध । कबन्धों का पराक्रम 256 3. (242) तुमुल-युद्ध ........ ..... 257 4 (243) तुमुल-युद्ध कृष्ण अपने भटों को सावधान कर स्वयं अपना रण-कौशल दिखलाते हैं। 258 5. (244) कृष्ण की चतुरंग सेना नष्ट होने लगी (245) तुमुल-युद्ध-पराजित बल. हरि महागज छोड़कर महारथ पर सवार होते है 7. (246) समर भूमि में दाएँ अंगों के फरकने रो कृष्ण को किसी मंगल-प्राप्ति की भावना जागृत होती है 8. (247) प्रद्युम्न, कृष्ण को पराजित कर उसे आत्म-समर्पण की सलाह देता है. किन्तु उसकी 263 अस्वीकृति पर वह (प्रद्युम्न) अपना धनुष खींच लेता है 9. (248) प्रद्युम्न, कृष्ण के धनुष को छिन्न-भिन्न कर उन्हें ललकारता है। कृष्ण भी पुनः प्रद्युम्न 265 पर आक्रमण करते हैं 10. (249) कृष्ण ने आग्नेयास्त्र छोड़ा तब प्रद्युम्न ने भी उसके विरुद्ध तैयारी की 266 11. (250) प्रद्युम्न ने वारुणास्त्र छोड़ा, उसके विरुद्ध कृष्ण ने अपना पवनास्त्र छोडा 267 12. (251) माधव ने सहम्राक्ष बाण छोड़ा, उसके उत्तर में प्रद्युम्न ने गोहनास्त्र एवं दिव्यास्त्र 269 _छोडे। उनके भी विफल होने पर कृष्ण ने चर्म- रत्न धारण कर कृपाण से युद्ध किया 13. (252) कृष्ण का क्रोधावेग देखकर नारद चिन्तित हो उठते हैं और नमोयान से उतर कर 270 पिता-पुत्र का परिचय कराते हैं 14. (253) पिता-पुत्र मिलाप। प्रद्युम्न अपनी दिव्य-विद्या से कृष्ण के मृत बन्धु बान्धवों को जीवित कर कृतार्थ कर देता है 15. (254) कृष्ण के आदेश से प्रद्युम्न के स्वागत के लिए सारा नगर सजाया गया। कृष्ण, रूपिणी, उदधिकुमारी आदि सभी मिलकर बड़े प्रसन्न होते हैं 16. (255) प्रद्युम्न एवं रूपिणी सहित कृष्ण गाजे-बाजे के साथ नगर में प्रवेश करते हैं 17. (256) नागरिक जनों द्वारा कृष्ण. रूपिणी एवं प्रद्युम्न की प्रशंसा तथा प्रद्युम्न का युवराज पट्टाभिषेक 275 चौदहवीं सन्धि 1. (257) प्रद्युम्न का यश सुनकर कनकमाला अपने पति के साथ उसे देखने पहुंची। कृष्ण एवं 278 रूपिणी ने उनका बड़ा सम्मान किया 2. (258) प्रद्युम्न का विद्याधर ..पुत्री रति के साथ विवाह 27g 3. (259) वसुदेव, मधुमथन एवं बलदेव आदि की मध्यस्थता से रूपिणी एवं सत्यभामा का बैर- 280 भाव दूर हो जाता है
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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