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________________ 128 ] महाकद सिंह विराउ पज्जुष्णचरिउ 11. (222) सत्यभामा का नापित रानी रूपिणी के केश कर्तन के स्थान पर अपनी तथा साथ में 237 आयी हुई समस्त महिलाओं की नाक, अंगुलियों एवं केश काट लेता है 12. (223) सत्यभामा विरूपाकृति वाले अपने सभी परिजनों को कृष्ण के सम्मुख भेजकर रूपिणी 238 1 की शिकायत करती है 13. (224) रूपिणी को प्रतिभासित होता है कि क्षुल्लक के वेश में उसका पुत्र उसके सम्मुख 239, उपस्थित हो गया है 14. (225) क्षुल्लक अपनी चिरवियोगिनी भाता रूपिणी के दुःख से व्यथित होकर अपना यथार्थ 240 रूप प्रकट कर देता है और उसे माँ कहकर साष्टांग प्रणाम करता है 15. (226) माता रूपिणी की इच्छापूर्ति हेतु वह अपने विद्या-बल से शिशु रूप धारण कर विविध 241 बाल्य लीलाओं से उसका मनोरंजन करता है 18. (227) हलधर क्रुद्ध होकर क्षुल्लक के विरोध में अपने खंचर-सेवक भेजता है 17. (228) क्षुल्लक अपनी विद्या के बल से क्षीणकाय द्विज का रूप धारण कर रूपिणी के दरवाजे 243 पर गिर पड़ता है 18. (229) हलधर क्षीणकाय विप्र (प्रद्युम्न) पर क्रोधित हो उठता है 19. (230) हलधर उस द्विज के पैर पकड़कर खींच ले जाता है. किन्तु नगर के बाहर पहुँचकर 245 वह आश्चर्यचकित हो जाता है, क्योंकि उसके हाथों में द्विज के केवल पैर मात्र ही थे, शरीर के अन्य अंग नहीं 20. (231) प्रद्युम्न पंचानन सिंह का रूप धारण कर हलधर को पुनः विस्मित कर देता है 246 21. (232) पंचानन हलधर को परास्त कर राजमहल में फेंक देता है 22. (233) रूपिणी के पूछने पर प्रद्युम्न ने बताया कि नारद एवं पुत्रवधु ऊपर नभोयान में रुके 248 242 244 247 249 (234) प्रद्युम्न के पराक्रम से रूपिणी अत्यन्त प्रभावित होकर प्रमुदित मन से आशीर्वाद देती है (235) मायामयी रूपिणी को हथेली पर रखकर प्रद्युम्न, कृष्ण एवं उनके दरबारियों को चुनौती देता है, कि यदि वे पराक्रमी हों तो उस अपहृत महिला को उससे वापिस लें 25. (236) रणभूमि के लिये प्रयाण की तैयारी 26. (237) रणभूमि के लिये प्रयाण की तैयारी, हवा में महाध्वज अंगडाईयाँ लेने लगा 27. (238) रण-प्रयाण के समय होने वाले अपशकुनों से हरि कृष्ण का चित्त विह्वल हो उठा 28. (239) अपने नभोयान में, विद्या के प्रभाव से प्रद्युम्न रूपिणी को छोड़कर गोविन्द-कृष्ण से । दुगुनी सेना एवं साधन निर्मित कर युद्ध-भूमि में कृष्ण सेना से जा भिड़ता है 250 251 252 253
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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