SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकद्र सिंह बिराउ पज्जुण्णचरिउ सौन्दर्य-वर्णन एवं बल-निरूपण । नारद का रुक्मिणी को सन्देश देना कि प्रद्युम्न का मेघकूटपुर के राजा के यहाँ लालन-पालन हो रहा है तथा वह 16 वर्ष पूर्ण होने पर वापिस आयेगा । कुमार प्रद्युम्न को सोलह-विद्याओं का लाभ। कुमार प्रद्युम्न और राजा कालसंवर का परस्पर में भीषण युद्ध एवं नारद द्वारा युद्ध को रोकना। नारद के साथ कुमार प्रद्युम्न का द्वारकापुरी के लिए प्रयाण एवं मार्ग में दुर्योधन की पुत्री उदधिकुमारी से भेंट तथा प्रद्युम्न का अनेक रूप धारण कर कौतुक करना एवं सम्ममा यो पुर:- मानु हा मान-भंग करना। अनेक प्रकार के क्रिया-कलाप करते हुए प्रद्युम्न का अपने पितामह के साथ मेष युद्ध तत्पश्चात् क्षुल्लक-वेश में अपनी माता रुक्मिणी के पास पहुँचना। प्रद्युम्न का विविध रूप बनाकर द्वारकावासी नर-नारियों को परेशान करना एवं बलभद्र के साथ सिंह-वेश में युद्ध करना। 13 17 प्रद्युम्न का कृष्ण के साथ भीषण युद्ध, बाद में नारद द्वारा युद्ध बन्द कराकर पिता-पुत्र का मिलन करवाना। 14 24 प्रद्युम्न एवं भानु-विवाह, शम्बु-जन्म, सुभानु-जन्म एवं उसका विवाह और शम्बु के विवाह के लिए कुण्डिनपुर के राजा रूपकुमार से युद्ध । 15 28 राजा रूपकुमार पर विजय प्राप्त कर उनकी पुत्रियों से प्रद्युम्न एवं शम्बु का विवाह । तीर्थकर नेमिनाथ द्वारा द्वारका-विनाश एवं जरदकुमार के द्वारा श्रीकृष्ण की मृत्यु की भविष्यवाणी तथा शम्बु, भानु, अनिरुद्ध, सत्यभामा, रुक्मिणी आदि का तपश्चरण एवं स्वर्ग-प्राप्ति तथा प्रद्युम्न का मोक्षगमन । 3. रचना-काल-निर्णय ___ज्जुण्णचरिउ में कवि के जन्म-काल या लेखन-काल के विषय में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। जहाँ तक हमार अध्ययन है, परवर्ती अन्य कवियों ने भी उसका स्मरण नहीं किया। अत: उसके जन्म या लेखन काल विषयक विचार करने के लिये निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं हो सके हैं। किन्तु कवि ने अपनी प्रशस्ति में अपने भट्टारक-गुरु एवं कुछ राजाओं के उल्लेख अवश्य किये हैं जिनसे विदित होता है कि उसका समय 12वीं-13वीं सदी रहा होगा। इसके समर्थन में निम्न तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं(1) पज्जुण्णचरिउ की प्राचीनतम प्रतिलिपि आमेर शास्त्र-भण्डार में सुरक्षित है, जिसका प्रतिलिपि काल वि०सं० 1553 है। अत: प०च० की रचना इसके पूर्व हो चुकी थी। (2) कवि ने गज्जगदेश अर्थात् गजनी का उल्लेख किया है। यह ध्यातव्य है कि महमूद गजनवी ने भारत में जिस प्रकार भयानक आक्रमण किए थे तथा सोमनाथ में जो विनाश-लीला मचाई थी, भारत और विशेष रूप से गुजरात उसे कभी भुला नहीं सकता। परजर्ती कालों में गजनी की उस विनाश-लीला की चर्चा इतनी अधिक रही कि कवि ने भावाभिभूत होकर अन्योक्तियों के माध्यम से अथवा प्रद्युम्न एवं भानुकर्ण, प्रद्युम्न एवं
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy