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( 3 ) प्रमाद या असावधानी से छूटे हुए पदों को हाशियों में अंकित किया गया है एवं उसके साथ मूल पृष्ठ की पंक्ति संख्या दे दी गयी है ।
(4) कहीं-कहीं पर कठिन शब्दों के संस्कृत पर्यायवाची शब्द अथवा उनके अर्थ भी मूल पंक्ति संख्या देकर हाँशियों में अंकित कर दिये हैं ।
( 5 ) इस प्रति के किसी किसी हाँशिये में किसी-किसी वर्ण के स्थान पर अन्य वर्ण के होने का भी संकेत दिया गया है, जिसे फुट नोटों में यथा स्थान दर्शाया गया है।
2. ग्रन्थ- परिचय
पज्जुण्णचरिउ प्रद्युम्नचरित सम्बन्धी अपभ्रंश भाषा में लिखित सर्वप्रथम स्वतन्त्र महाकाव्य है। वह जैनपरम्परानुमोदित महाभारत का एक अत्यन्त मर्म स्पर्शी आख्यान है। महाकवि जिनसेन ( प्रथम ) कृत हरिवंशपुराण एवं गुणभद्र कृत उत्तरपुराण जैसे पौराणिक महाकाव्यों से कथा - सूत्रों को ग्रहण कर महाकवि सिद्ध ने उसे नवीन भाषा एवं शैली से सजा कर एक आदर्श भौलिक स्वरूप प्रदान करने का सफल प्रयास किया है। जैनपरम्परानुसार प्रद्युम्न 21वां देव था। यह पूर्व जन्म के कर्मों के फलानुसार ज० श्रीकृष्ण का पुत्र होकर भी जन्म - काल से ही अपहृत होकर विविध कष्टों को झेलता रहता है। माता-पिता का विरह, अपरिचित - परिवार में भरण-पोषण, सौतेले भाइयों से संघर्ष, दुर्भाग्यवश धर्म-पिता से भी भीषण युद्ध, दिमाता के विविध षडयन्त्र और अनजाने ही पिता श्रीकृष्ण से युद्ध जैसे घोर संघर्षों के बीच प्रद्युम्न के विवश - जीवन को पाठकों की पूर्ण सहानुभूति प्राप्त होती है। विविध विपत्तियाँ प्रद्युम्न के स्वर्णिम भविष्य के लिए खरी कसौटी सिद्ध होती हैं । काल-लब्धि के साथ ही उसके कष्ट समाप्त होते हैं। माता-पिता से उसका मिलाप होता है तथा वह एक विशाल साम्राज्य का सम्राट बन जाता है किन्तु भौतिक सुख उसे अपने रंग में नहीं रंग पाते । शीघ्र ही वह उनसे विरक्त होकर मोक्ष-लाभ करता है।
कवि ने उक्त कथानक को 15 सन्धियों एवं उनके कुल 308 कड़वकों में चित्रित किया है, जो निम्न प्रकार हैं:
विषय
सन्धि- कुल कड़वक
क्रम
संख्या
16
1
2 3 4
5
6
प्रस्तावना
20
14
17
17
23
। तिलॅयपप्णतः गाथा 1484
कवि सिद्ध द्वारा स्वप्न में सरस्वती दर्शन एवं उनकी प्रेरणा से ग्रन्थ-प्रणयन तथा सौराष्ट्र देश की सुरम्यता का वर्णन ॥
कृष्ण और बलभद्र का कुण्डिनपुर जाकर रुक्मिणी हरण तथा शिशुपाल वध । रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न का जन्म एवं धूमकेतु-असुर द्वारा उसका हरण |
पुत्र हरण एवं तत्सम्बन्धी शोक, नारद का प्रद्युम्न की खोज में सीमन्धर स्वामी के पूर्व - बैर की कथा का आरम्भ ।
समवशरण में पहुँचना एवं उनके द्वारा प्रद्युम्न प्रद्युम्न का पूर्व भव निरूपण एवं मगध देश का
वर्णन ।
प्रद्युम्न का पूर्व - भव- निरूपण एवं उस माध्यम से अयोध्या एवं कौशल - नरेशों का