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________________ 101 अ. प्रति की विशेषताएँ (1) यह प्रति अद्यावधि प०च० की प्रतियों में प्राचीन एवं पूर्ण है । (2) इसमें व एवं च म एवं स झ एवं त्र (ऋ) म एवं प छ एवं ठ, क्ख एवं रक वर्णों में समानता जैसी रहती है। अतः प्रति का अध्ययन सावधानीपूर्वक करने की आवश्यकता है। (3) ह्रस्व औ को र्ड के रूप में दर्शाया गया है। माकड़ सिंह विरइड पज्जुष्णचरिउ (4) कहीं कहीं ख के लिए ष का प्रयोग किया गया है। (5) 'ण' के स्थान पर प्रायः 'न' का प्रयोग किया गया है। (6) कहीं-कहीं पर कठिन शब्दों के संस्कृत पर्यायवाची शब्द अथवा उनके अर्थ भी मूल पंक्ति संख्या देकर हाँशियों में अंकित कर दिये गये हैं । ब. प्रति ब प्रति श्री ऐलक पन्नालाल दि० जैन सरस्वती भवन नसियाँ जी, ब्यावर ( राजस्थान) में सुरक्षित है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार होता है - ।। ओं नमः सिद्धेभ्यः ।। खमदमजमणिलयहो तिहुअणतिलयहो वियलियकम्प कलंकहो....... आदि । इस प्रति में कुल पत्र संख्या 124 है । पृष्ठ के बायें एवं दायें हाँशिये क्रमश: 1.3, 1.5 इंच तथा ऊपरी एवं नीचे के हाशिये क्रमश 1.1, 1.1 इंच के हैं। दाएँ-बाएँ हाँशियों में लाल स्याही से मोटी 3-3 रेखायें अंकित हैं । इनके दोनों किनारों पर भी मोटी 1-1 पंक्ति अंकित है। प्रत्येक पृष्ठ में 11-11 पंक्तियाँ एवं 41 41 वर्ण हैं। इस प्रति में गहरी काली एवं लाल स्याही का प्रयोग किया गया है। मूल विषय काली स्याही में तथा छन्द-नाम, छन्द-संख्या तथा विराम चिह्न लाल स्याही में अंकित हैं। सर्वत्र मोटी कलम का प्रयोग किया गया है। हाँ, हाँशिये में लिखित टिप्पणियों में पतली कलम का प्रयोग किया गया है। इसमें मटमैले कागज का प्रयोग किया गया है। प्रति की स्थिति उत्तम है। लेखन प्रक्रिया की स्पष्टता, सुन्दरता, एकरूपता, एवं शुद्ध पाठों तथा क्वचित् कदाचित् संस्कृत टिप्पणियों को देखकर प्रतिलिपिकार की अगाध विद्वत्ता एवं समर्पित सरस्वती भक्ति का अनुमान लगाया जा सकता है 1 प्रत्येक पृष्ठ के ठीक मध्य भाग में 1.5, 1.7 इंच का अण्डाकार आकृति का स्थान छोड़ा गया है । सम्भवतः यह स्थान आवश्यकता पड़ने पर सुरक्षा की दृष्टि से पत्रों को छेद कर उन्हें एक सूत्र में पिरोकर रखने की दृष्टि से छोड़ा गया होगा । इस प्रति की शुद्धता, पूर्णता और सन्तोषजनक दशा में होने के कारण, इसी प्रति का अनुवाद तथा सम्पादनादि कार्य में उपयोग किया गया है। ब. प्रति की विशेषताएँ (1) वर्ण-प्रयोग - प्रस्तुत प्रति के निम्न व पाठकों को कुछ भ्रामक प्रतीत हो सकते हैं। अत: उन्हें सावधानीपूर्वक पढना चाहिए। यथा स-म, र-र, दु-टु, ङ-भ, भि-ति इ-व, उ नु ग्न-ग, तु-नु (2) ण्ण एवं ज्झ को दर्शित करने के लिए उसी एकल वर्ग के मध्य में एक तिरछी रेखा अंकित की गयी है।
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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