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विषयानुक्रम
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18. (161) कालसंवर एवं प्रद्युम्न का युद्ध
171 19. (162) प्रद्युम्न की सैन्यकारिणी विद्या का चमत्कार राजा कालसंवर एवं प्रद्युम्न में तुमुल युद्ध 172 20. (163) आलोकिनी-विद्या का चमत्कार-कालसंवर एवं प्रद्युम्न में भयानक युद्ध
173 21. (164) कालसंवर, प्रद्युम्न से पराजित होकर अपनी रानी कनकप्रभा से विद्याएँ माँगने जाता 174
है और नहीं मिलने पर निराश हो जाता है 22. (165) प्रज्ञप्ति विद्या का चमत्कार-कालसंवर एवं प्रद्युम्न में तुमुल युद्ध 23. (166) कालसंवर एवं प्रद्युम्न का तुमुल युद्ध, महर्षि नारद आकर युद्ध बन्द करा देते हैं 176 24. (167) नारद के साथ कुमार प्रद्युम्न द्वारावती के लिए प्रस्थान करता है
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दसवीं सन्धि
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1. (168) (द्वारावती चलने के लिए महर्षि नारद ने तत्काल तिमा का निर्माण किया 2. (169) नारद द्वारा निर्मित विमान प्रद्युम्न के पैर रखते ही सिकुड़ जाता है। अतः नारद के
आदेश से प्रद्युम्न दूसरा विमान तैयार करता है 3. (170) प्रद्युम्न अपने नव-निर्मित सुसज्जित नभोयान में बैठकर मेघफूटपुर से द्वारावती की
ओर प्रस्थान करता है 4. (171) विमान की वेगगति से नारद थरहराने लगता है. अतः प्रद्युम्न मन्द गति से आगे बढ़ाता है 5. (172) कुमार प्रद्युम्न ने नभ-भार्ग में जाते हुए रौप्याचल को देखा 6. (173) अटवी का विहंगम वर्णन 7. (174) मार्ग में कुमार प्रद्युम्न ने एक सुसज्जित सैन्य समुदाय देखा 8. (175) कुरुनाथ-दुर्योधन की सेना. माता रूपिणी के परामव का कारण बनेगी. यह जानकर
प्रद्युम्न आकाश में ही विमान रोककर शबर के रूप में धरती पर उतरता है 9. (176) विकराल शबर वेशधारी प्रद्युम्न कुरुसेना को रोक लेता है । 10. (177) शबर वेशधारी प्रद्युम्न कुरुसेना से शुल्क के रूप में राजकुमारी उदधिकुमारी को
माँगता है 11. (178) शबर ने कुरुसेना के छक्के छुड़ा दिये 12. (179) शबर द्वारा उदधिकुमारी का अपहरण 13. (180) उदधिकुमारी शीलभंग के भय से 'महर्षि नारद से अपनी सुरक्षा की माँग करती हुई।
उग्र तप की प्रतिज्ञा करती है 14. (181) नारद के आदेश से प्रद्युम्न उस उदधिकुमारी को अपना यथार्थ रूप दिखा देता है।
वह प्रसन्न मन से उसके साथ द्वारामती पहुँचती है 15. (182) प्रद्युम्न महर्षि नारद एवं उदधिकुमारी के साथ वारामती पहुँचता है 16. (183) नारद एवं उदधिकुमारी युक्त विमान को नभ में ही स्थिर कर वह प्रद्युम्न अकेला ही
उतर कर द्वारावती घूमने निकलता है
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