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________________ 124] पहाकह सिह विरइ पहुण्ण चरित 16. (140) कुमार प्रद्युम्न विपुलवन में एक लावण्यमती तरुणी को देखता है 147 17. (141) तरुणी का नख-शिख वर्णन एवं उस पर प्रद्युम्न आकर्षित होकर उसके साथ विवाह 148 करने की प्रतिज्ञा करता है 18. (142) (धर्ममाता) कंचनप्रभा की (धर्मपुत्र) प्रद्युम्न के प्रति प्रबल काम-भावना 150 19. (143) कामविह्वल होकर कंचनमाला कुमार प्रद्युम्न को दूती द्वारा अपने निवास पर बुलाती है 151 बातमी सन्धि 154 156 1. (144) रानी कनकमाला (कंचनप्रभा) की कामावस्थाएँ। कुमार प्रद्युम्न किंकर्तव्यविमूढ हो 152 जाता है 2. (145) काम-विह्वल होकर रानी कंचनमाला कुमार प्रद्युम्न से प्रणय-निवेदन करती है 153 3. (146) कुमार प्रद्युम्न रानी कंचनप्रभा की भर्त्सना कर उदधिचन्द्र मुनिराज से उसका पूर्वभव पूछता है 4. (147) मुनिराज द्वारा रानी कंचनप्रभा का पूर्वभव-कथन 5. (148) कंचनप्रभा का पूर्व-भव । वह वडपुर के माण्डलिक राजा कनकरथ की पत्नी थी 157 6. (149) मुनिराज द्वारा कंचनमाला को प्रद्युम्न-प्राप्ति का वृत्तान्त कथन तथा रूपिणी के भवान्तर 158 7. (150) (रूपिणी के भयान्तर-) मगधदेश के सोम-द्विज की लक्ष्मी नामकी रूपगर्विता पुत्री थी 159 8. (151) (रूपिणी के भवान्तर-) वह रूपगर्विता पुत्री (लक्ष्मी) कुष्ट रोगिणी होकर मरी। विभिन्न 160 योनियों में जन्म लेकर पुनः पूतगन्धा नामकी धीवरी कन्या के रूप में जन्मी 9. (152) पिता द्वारा निष्कासित पूतिगन्धा नदी किनारे रहने लगी। वहाँ एक मुनिराज पधारे 161 10. (153) धीवर कन्या को अणुव्रत प्रदान कर मुनिराज कोसलपुरी की ओर चले। वह धीवर 162 कन्या भी उनके पीछे-पीछे चल दी 11. (154) व्रत-तप के फलस्वरूप वह धीवरी कन्या, स्वर्ग-देवी तथा वहाँ से चयकर राजा भीष्म 164 की राजकुमारी रूपिणी के रूप में जन्मी 12. (155) राजकुमारी रूपिणी से विवाह करने हेतु शिशुपाल एवं हरि-कृष्ण कुंडिनपुर पहुंचते हैं 165 13. (156) शिशुपाल का वध कर हरि-कृष्ण रूपिणी को हर कर ले आये। उससे प्रद्युम्न का 166 जन्म हुआ, जिसका छठे दिन अपहरण कर गक्ष ने उसे खदिराटवी में शिला के नीचे चाँप दिया और वहाँ से कालसंवर उसे उठा कर अपने घर ले आया 14. (157) वजदंष्ट्र आदि 500 सौतेले भाई ईर्ष्यावश प्रद्युम्न की हत्या करना चाहते हैं किन्तु उन्हें 167 असफलता ही मिलती है 15. (158) कुमार प्रद्युम्न को रानी कंचनमाला द्वारा तीन विद्याओं की प्राप्ति 168 16. (159) त्रिया चरित्र का उदाहरण, राजा कालसंवर प्रद्युम्न का वध करने के लिए तत्पर हो 169 जाता है 17. (160) आलोचनी-विद्या का चमत्कारी प्रभाष. कुमार प्रद्युम्न का वध नहीं किया जा सका 170
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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