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________________ विषयानुक्रम [123 125 126 127 12. (118) नारद ने प्रद्युम्न की कुशलता की सूचना रूपिणी को देकर उसे सन्तुष्ट कर दिया। प्रद्युम्न का शैशव-वर्णन 13. (119) कुमार प्रद्युम्न की शिक्षाएँ 14. (120) कुमार काल में प्रद्युम्न का पराक्रम एवं यश 15. (121) प्रद्युम्न को युवराज के रूप में देखकर सौतों को बड़ी ईर्ष्या हुई 16. (122) कालसंवर के 500 राजकुमार पुत्रों के साथ कुमार प्रद्युम्न विजयाई पर्वत पर क्रीड़ा । हेतु पहुँचता है 17. (123) प्रद्युम्न का सविणणारी राक्ष से शुद्ध 18. (124) यक्षराज एवं कुमार प्रद्युम्न का वार्तालाप 128 129 135 आठवीं सन्धि 1. (125) कुमार प्रद्युम्न द्वारा विद्या-लाभ का उपाय पूछे जाने पर यक्षराज द्वारा पूर्व-कथा वर्णन 132 2. (126) 36 वर्षों में समस्त विद्याएँ प्राप्त कर कनकपुत्र हिरण्य मदान्ध हो गया 133 3. (127) राजा हिरण्य की दीक्षा एवं उसके लिए सिद्ध विद्याओं के आश्रय की चिन्ता 134 4, (128) विजयाड़ के दुर्गम जिनभवन में प्रवेश करने पर पवनाशन यक्ष द्वारा कुमार प्रद्युम्न के 134 लिए अमूल्य विद्याएँ एवं मणिशेखर की भेंट 5. (129) कालमुखी गुफा में निशाचर द्वारा कुमार को छत्र, चमर, वसुनन्दक- खड्ग तथा नागगुफा के नागदेव ने दो विद्याएँ एवं विभिन्न वस्तुएँ भेंट स्वरूप प्रदान की 6. (130) कुमार प्रद्युम्न की सुर-वापिका के रक्षपाल से मुठभेड़ 137 · 7. (131) कुमार प्रद्युम्न को देव- वापिका के रक्षपाल द्वारा मकरध्वज, अग्निदेव द्वारा दूष्यवस्त्र । 137 एवं पर्वतदेव द्वारा कुण्डल-युगल की भेंट 8. (132) कुमार प्रद्युम्न को विशाल पर्वत के आम्रदेव के पास ले जाया जाता है 138 9. (133) कुमार प्रद्युम्न को वानर वेशधारी देव द्वारा शेखर एवं पुष्पमाला की भेंट 139 10. (134) कुमार प्रद्युम्न को गजदेव ने गज एवं मणिधर सर्प ने उसे असि, नपक, सुरत्न, कवच. 140 ___ कामांगुष्ठिका एवं छुरी भेंट स्वरूप प्रदान की 11. (135) कुमार प्रद्युम्न को महासुर ने अंगद, कंकण-युगल, सुवस्त्र, हार एवं मुकुट भेंट 142 स्वरूप दिये 12. (136) कुमार प्रद्युम्न को वराहदेव द्वारा पुष्पचाप एवं विजय-शंख प्रदान 13. (137) पयोवन का वर्णन, वसन्त नामक विद्याधर मनोजव विद्याधर को बाँध लेता है किन्तु । 144 कुमार प्रद्युम्न उसे बन्धन मुक्त कर देता है 14, (138) कुमार प्रद्युम्न को विद्याधर मनोजव ने जयसारी एवं इन्द्रजाल विद्याएँ एवं विद्याधर वसन्त ने अपनी पुत्री नन्दनी का उसके साथ विवाह कर दिया 15. (139) कुमार प्रद्युम्न को अर्जुनवन के यक्ष द्वारा पंचवाण युक्त पुष्प-धनुष. भीमासुर द्वारा 145 . पुष्प-शैया एवं पुष्प-छत्र की भेंट 143 145
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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