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________________ 122] महाकई सिंह निरइउ पज्जुण्णचरिउ 109 110 111 19. (102) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म. कथन के प्रसंग में-) राजा मधु रानी कनकप्रभा के पास दूती भेजता है। सन्ध्या एवं रात्रि वर्णन 20. (103) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) चन्द्रोदय वर्णन 21. (104) (प्रद्युम्न के पूर्व..जन्म-कथन के प्रसंग में ) चन्द्रोदय वर्णन, दूतियाँ रानी कनकप्रभा को समझाकर राजा मधु के सम्मुख ले आती हैं 22. (105) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) राजा मधु एवं रानी कनकप्रभा की काम... केलियों का वर्णन 23. (106) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) राजा मधु रानी कनकप्रभा को पट्टरानी का पद प्रदान करता है। उधर कनकरथ इस समाचार को सुनकर विक्षिप्त हो जाता है 112 113 118 उमराज सातवीं सहित 1. (107) (प्रद्युम्न के पूर्वजन्म-कथन के प्रसंग में-) विक्षिप्तावस्था में राजा कनकरथ अयोध्या 115 पहुँच जाता है, जिसे देखकर कंचनप्रभा की धाय रोने लगती है 2 (108) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) अपने प्रियतम कनकरथ की दुःस्थिति रानी 118 कनकप्रभा राजा मधु को सुनाती है 3. (109) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में..) परस्त्री-सेवन के अपराधी को शूली की 117 सजा (सुनाये जाने) से रानी कनकप्रभा राजा मधु पर क्रोधित हो उठती है 4. (110) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) राजा मधु को वैराग्य, उसने मुनिराज विमलवाहन से दीक्षा माँगी 5. (111) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) राजा मधु एवं रानी कनकप्रभा का दीक्षा- 119 ग्रहण एवं कठिन तपश्चर्या 6. (112) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में.) घोर तपस्या कर मुनिराज मधु अच्युत देव 120 हुए। राजा कैटभ ने एक सरोवर में कमल पुष्प देखा 7. (113) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म.कथन के प्रसंग में-) राजा कैटभ की मुनि-दीक्षा एवं अच्युत 120 स्वर्गगमन B. (114) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) राजा कनकरथ मरकर तापस एवं उसके 121 बाद असुर कुमार देव तथा रानी कंचनप्रभा मरकर विद्याधर पुत्री हुई 9. (115) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) राजा मधु के जीव का कृष्ण-पत्नी रूपिणी 122 के पुत्र रूप में जन्म एवं छठवें दिन असुर द्वारा उसका अपहरण 10. (116) विदेह क्षेत्र में प्रद्युम्न का पूर्व वृत्तान्त एवं वर्तमान उपस्थिति जानकर नारद मेघकूटपुर 123 पहुँचता है 11. (117) नारद ने रूपिणी को बताया कि प्रद्युम्न मेघकूटपुर के विद्याधर राजा कालसंवर के 124 यहाँ सुरक्षित है
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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