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________________ 74 1201 कति ::. जुन्। चर्चा : 16. (66) (प्रद्युम्न के पूर्वभव के अन्तर्गत) अग्निभूति वायुभूति के पूर्व जन्म शालिग्राम के प्रवर द्विज का वर्णन 17. (67) (प्रद्युम्न पूर्व जन्म कथन प्रसंग में-) प्रवर विप्र ने शृगाल-बच्चों के शवों को अपने दरवाजे पर लटका दिया 75 पांचवी सहित 79 79 80 1. (68) (प्रद्युम्न के पूर्व जन्म के प्रसंग में-) प्रवर विन मरकर अपनी पुत्र. वधु की कोख से जन्म लेता है 2. (69) (प्रद्युम्न के जन्मान्तर कथन के प्रसंग में-) मूक विप्र पुत्र (प्रवर विप्र के जोव) को धर्मोपदेश 3. (70) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) अग्निभूति वायुभूति द्वादश-व्रत ग्रहण कर अपने पिता सोमशर्मा को कहते हैं कि श्रमण मुनि को विवाद में जीतना कठिन है 4. (71) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) दोनों विप्र-पुत्र मुनि संघ की हत्या के लिए प्रस्थान करते हैं 5. (72) (प्रद्युम्न के पूर्वजन्म-कथन के प्रसंग में-) गुप्त यक्षदेव भनि-हत्या के लिए प्रयत्नशील अग्निभूति-वायुभूति को कीलित कर देता है 6. (73) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में..) कीलित विप्र-पुत्रों का वर्णन 7. (74) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) मुनिराज के आग्रह से यक्षराज विप्र-पुत्रों को क्षमा कर देता है 8. (75) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) मुनिराज के समीप द्विजपुत्रों ने व्रतभार ग्रहण किया 9. (16) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) सोमशर्मा की रत्नप्रभा में उत्पत्ति 10. (77) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म कथन के प्रसंग में-) दोनों सौधर्म देव (दोनों विप्र-पुत्र के जीव) अयोध्या की सेठानी धारणी के पुत्र रूप में उत्पन्न हुए 11. (78) (प्रद्युम्न के पूर्व जन्म-कथन के प्रसंग में-) अयोध्यापुरी में मुनीश्वर महेन्द्रसूरि का आगमन 12. (79) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में-) राजा अरिंजय मुनिराज महेन्द्रसूरि के दर्शनार्थ नन्दनवन में जाता है 13. (80) (प्रद्युम्न के पूर्व-जन्म-कथन के प्रसंग में.) राजा अरिंजय एवं उनके प्रजाजनों को मुनिराज महेन्द्रसूरि का धर्मोपदेश 14. (81) उपदेश श्रवण कर राजा का दीक्षा ग्रहण 15. (82) सेठ-सेठानी तथा उनके दोनों पुत्रों (मणिभद्र एवं पूर्णभद्र) ने भी व्रत ग्रहण किये 16. (83) मणिभद्र एवं पूर्णभद्र के जन्मान्तरों का नवागत मुनि द्वारा वर्णन
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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