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महाका सिंह बिराउ पज्जपणचरित
ने इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं किया। (ख) 14/3/8- यह कथन सत्यभामा का है अथवा रूपिणी का? यह स्पष्ट नहीं होता। इसी प्रकार-- (ग) 13/7/7 - यह स्पष्ट नहीं कि कौन किसको कह रहा है? वस्तुतः यहाँ पर "कृष्ण द्वारा कहा
गया है। ऐसा स्पष्ट लिखा जाना चाहिए था। (2) कुरुभूमि का युद्ध यहाँ प्रसंगोचित नहीं प्रतीत होता (13/9/8)। (3) कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि कवि कथानक-प्रसंग को सरस ढंग से विस्तृत रूप में प्रस्तुत कर
सकता था, किन्तु उसने क्षिप्रगति से उस विषय को आगे बढ़ाया है। कवि ने कथा-नायक ..- प्रद्युम्न की युवावस्था का वर्णन मात्र एक-दो कडबल में ही समाप्त कर दिया (712/7-10; 7/13/1-9) जबकि
कवि उसके विविध अन्तर्बाह्य सौन्दर्य तथा उसके गुणों का वर्णन विस्तृत रूप में कर सकता था। इनके अतिरिक्त पूर्वोक्त तथ्यों के प्रकाश में कोई भी सहृदय विद्वान् महाकवि सिंह के प्रस्तुत पज्जुण्णचरिउ का मूल्यांकन भली भाँति कर सकता है। वस्तुत: संक्षेप में कहा जाय तो प्रस्तुत 'महाकाव्य में चरित, आख्यान, काय, सिद्धानमा वर्णन आचार गोण आणत्म सांस्कृतिक एवं सामाजिक तथ्य एवं भूगोल के विविध रूप प्रस्तुत किये गये हैं। भाषा एवं साहित्य की दृष्टि से भी कवि सिंह एक महाकवि के रूप में और उनका प्रस्तुत काव्य अपनी गुणवत्ता के आधार पर महाकाव्य की कोटि में खरा उतरता है इसमें सन्देह नहीं।
בנם