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[ 115 देशों, नगरों, ग्रामों के साथ-साथ मडम्ब, खेड, पत्तन जैसी भौगोलिक इकाइयों का भी वर्णन किया है। इसके साथ-साथ कवि ने आर्थिक जीवन पर भी प्रकाश डाला है, जिसका विश्लेषण हमने 'आजीविका के साधन प्रकरण में किया है । कवि के इस वर्णन से बारहवीं, तेरहवीं सदी के भौतिक अथवा प्राकृतिक भारत की झोंकी मिलती है
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13. प० च० की आद्य एवं अन्त्य प्रशस्तियों में तत्कालीन नरेश बल्लाल, मलधारी गुरु अमियचन्द, शाकम्भरी-नरेश अर्णोराज एवं भृत्य भुल्लण उल्लेख मिलते हैं, यद्यपि आधुनिक भारतीय इतिहास में ये अत्यल्प चर्चित अथवा सर्वथा उपेक्षित व्यक्ति हैं, किन्तु कवि के उल्लेखों से इनकी महत्ता प्रकट होती है। वस्तुतः ये व्यक्ति इतिहास की टूटी हुई कड़ियाँ जोड़ सकते हैं। इनका विशेष अध्ययन किया जाना चाहिए ।
14. कवि मार्मिक प्रसंगों के नियोजन में अत्यन्त पटु है। युद्ध क्षेत्र में जब दोनों ओर की सेनाएँ आमने-सामने
उपसंहार
भुजंगी तलवारें निकाल कर खड़ी हैं, तब पराक्रमी एवं विवेकशील राजा अहंकारी प्रतिपक्ष के पास अपना शान्तिदूत भेजकर किस प्रकार व्यर्थ के खून-खराबे को शमन करने का प्रयास करता है, इसका कवि ने राजा मधु एवं शाकम्भरी नरेश नीम के माध्यम से सुन्दर र दिया है। इसी प्रकार प्रद्युम्न जब सोलह वर्षों के चिर- विछोह के बाद अपनी माता के सम्मुख प्रस्तुत हो कर उसे अपना यथार्थ परिचय देता है, तब आनन्द विभोर होकर चिर वियोगिनी माता रूपिणी ( रुक्मिणी) अपने शब्दों से हृदय के प्रमोद को व्यक्त नहीं कर पाती, वह केवल छलछलाते हर्षाश्रुओं से उसे अपने गले से लगा लेती है। प्रसंग की मार्मिकता उस समय और भी अधिक बढ़ जाती है, जब स्नेहमयी माँ की मनोकामना जानकर वह आज्ञाकारी पुत्र जन्मकाल से लेकर शैशवकालीन समस्त बाल क्रीड़ाएँ अपनी विद्या के प्रभाव से यथाक्रमानुसार स्वाभाविक रूप से प्रदर्शित करता है ।
15. व्यावहारिक क्षेत्र में भी कवि ने अपनी कुशल प्रतिभा का परिचय दिया है। उसका क्षेत्र किसी घेरे आबद्ध नहीं रहा। चाहे चिकित्सा का क्षेत्र हो, या ज्योतिष का, चाहे वाणिज्य विद्या का क्षेत्र हो या ताम्बूल बनाने एवं सुगन्धित पदार्थों के निर्माण करने की प्रक्रिया का (3/5/11, 14/16/14), कवि ने उसका सफल वर्णन किया है। औषधि के क्षेत्र में पौष्टिक औषधियों के नुस्खे (15/3/3), ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में ग्रहों, राशियों एवं नक्षत्रों की चर्चा (14/21/11, 15/2/3), एवं माप-तौल के क्षेत्र में उसने अद्धमास ( आधा माशा - 10/20/9), अद्धवरिस (आधा तोला 10/21/ 9) के प्रासंगिक उल्लेख किए है।
16. प० च० एक पौराणिक महाकाव्य है। अतः इसमें पौराणिक तत्वों का प्राचुर्य है। स्वर्ग-नरक वर्णन, सृष्टि - विद्या आदि के उल्लेख इसमें समाहित हैं। यद्यपि परम्परा की दृष्टि से इन उल्लेखों में कवि की कोई मौलिकता नहीं, न ही कवि का कोई चिन्तन ही, फिर भी कवि ने उन तथ्यों का प्रासंगिक रूप प्रस्तुत कर परम्परा का निर्वाह किया है।
17. उक्त विशेषताओं के अतिरिक्त १०च० में क्वचित् कदाचित् विसंगतियों भी दृष्टिगोचर होती हैं, जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं
(1) कवि ने कहीं-कहीं प्रसंगों या व्यक्तियों के उल्लेख किए बिना ही वक्तव्य या घटनाओं का वर्णन प्रारम्भ कर दिया है। इससे यह पता नहीं चल पाता कि किसने किससे कहा है। यथा—
(क) 14/2/6-7 – यह वक्तव्य राजा कालसंवर का है, जो कि कृष्ण के लिए कहा गया है, किन्तु कवि