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________________ महाकर सिंह विरइउ पञ्जुण्णचरिउ 8. पज्जुण्णचरिउकार की यह विशेषता है कि उसने प्रस्तुत कथानक के निर्माण में जैन एवं जैनेतर दोनों ही सम्प्रदाय के साहित्य का आवश्यकतानुसार उपयोग किया है। जैन-साहित्य में उसने वसुदेवहिण्डी (संघदासगणि), हरिवंशपुराण (जिनसेन प्रथम), उत्तरपुराण (गुणभद्र), अपभ्रंश-महापुराण (पुष्पदन्त), प्रद्युम्नचरित (महासेन), तत्त्वार्थराजवार्तिक (अकलंक), सर्वार्थसिद्धि (पूज्यपाद), समन्तभद्र भारती (समन्तभद्र). परमात्मप्रकाश और योगसार (जोइन्दु) आदि ग्रन्थों का उपयोग किया है, उसी प्रकार उसने महर्षि व्यासकृत महाभारत, सौन्दरनन्द (अश्वघोष), रघुवंश, कुमारसम्भव, ऋतुसंहार एवं मेघदूत (कालिदास), शिशुपालवध (माघ), किरातार्जुनीयम् (भारवि) के साथ-साथ मनुस्मृति तथा सांख्य, वेदान्त, मीमांसा, योग एवं कौलिक-सम्प्रदाय सम्बन्धी कुछ ग्रन्थों से भी वैचारिक प्रेरणाएँ संग्रहीत की हैं। प० च0 में प्रयुक्त्त अगस्त्य ऋषि द्वारा समुद्र शोषण (11/11/7), पशुवध (6/1/2), अग्निहोत्र (4/14/12), वेदमन्त्रोच्चार (6/1/1), उक्त ग्रन्थों से ही गृहीत है। इसी प्रकार सब्बसाइ (-अर्जुन, 13/14/15), विउयरु (वृकोदर-भीम-13/14/35), जमल (नकुल-सहदेव, 13/14/15/) कुम्भोयरु (दोण 13/14/15) आदि शब्दावली भी उक्त साहित्य से ही गृहीत है। कवि ने उनमें प्रयुक्त संस्कृत नामों का अपभ्रंशीकरण कर लिया है। एकाध स्थान पर कवि ने पर-मंजरी से भी प्रेरणा ली है। उसकी प्रथम जवनिका के पद्य सं०13 की प्रथम पंक्ति प० च० की 15/4/14 के पद से मेल खाती है। 9. प० च० में तत्कालीन सामाजिक भ्रष्टाचारों का भी कवि ने दिग्दर्शन कराने का प्रयत्न किया है। उसके अनुसार रिश्वतखोरी (11/2/9), आत्महत्या (4/8/6), पुत्रापहरण (4/5), कन्मापहरण (2:15) तथा पति के जीवित रहते हुए भी पत्नी का अपने अन्य प्रेमी के साथ जीवन-निर्वाह (6/22) जैसे समाज विरोधी कार्य भी होते रहते थे। 10. कवि का पूर्वकाल भारतीय राजनीति का अशान्तिकाल था। चतुर्दिक युद्ध एवं आक्रमणों की बौछारें होती रहती थीं एवं सैन्य-संगठनों में ही राजाओं की अधिकांश शक्ति लगी रहती थी। इसकी झलक प० च० के विविध युद्ध-प्रसंगों में मिलती है। कवि ने अश्वों के विषय में (यथा- 1/10, 10/17-21, 14/18) विशेष प्रकाश डाला है। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि युद्ध में अश्वों का प्रमुख स्थान था। युद्ध में प्रयुक्त आयुधास्त्रों से मध्यकालीन पुद्ध-सामग्री पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। 11. नभोयान की चर्चा यद्यपि प्राचीन-साहित्य में भी मिलती है। महर्षि वाल्मीकि के बाद महाकवि कालिदास ने "अभिज्ञान-शाकुन्तल" में उसका सुन्दर चित्र खींचा है किन्तु कवि सिंह का चित्रण उससे भी विशिष्ट प्रतीत होता है। कवि ने विमान की संरचना, उसके गुण-दोषों का विवरण, आकाश-मार्ग में विहार, आवश्यकता पड़ने पर उसे आकाश-मार्ग में ही रोके रखने, आवश्यकता पड़ने पर महिलाओं द्वारा उसके संचालित करने आदि का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है। यही नहीं, तीव्रगति से संचालित विमान को एकाएक रोक देने पर किस प्रकार का झटका लगता है, इसका भी सुन्दर वर्णन किया है। 12. महाकवि ने देश, नगर, जनपद, ग्राम आदि के वर्णन-प्रसंगों में अनेक ऐसे भौगोलिक नामों के उल्लेख किये हैं, जिनमें मध्यकालीन भारतीय भौगोलिक परिस्थिति का परिचय मिलता है। इस वर्णन को देखकर यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि महाकवि भौतिक जगत का भी अच्छा ज्ञाता था। यही कारण है कि उसने प्राकृतिक भूगोल में द्वीप, पर्वत. अरण्य, वनस्पतियाँ, पशु-पक्षी एवं जीव-जन्तुओं तथा राजनैतिक भूगोल में अनेक
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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