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प्रस्तावना
(11/21/5), मांड (11/21/9) के ही उल्लेख मिलते हैं।
(2) स्वाद्य-पदार्थों में — ताम्बूल (1/14/4, 3/2/9), लवंग (3/1/5), मोदक (12/3/7), खाजा (11/21/9), श्रीखण्ड (11/21/9), खीर ( 11/21/ 9), कंकेलि (3/1/5), आम्र (3/7/5), द्राक्षा (3/1/5), सूवारु ( 11/21/6), गालिएर ( 15/3/12), आउलं ( आमला 10/6/9 ) तिल (14/16/14), फणिस ( पनस, 3/7/4), नारंगी (10/6/6) एवं दही (15/3/13) और
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(3) पेय पदार्थों में पानक ( नारियल + द्राक्षा, 15/3/12), (शर्करा + केला 15/3/12 ) ( दही + कर्पूर 15/ 3 / 13 ) एवं (शर्करा + दुग्ध 15/4/6 ) दूध (1/7/9-11), गुडरस (11/21/ 9), इक्षुरस (1/7/7) एवं मदिरा (11/ 19/11) तथा —
(4) अवलेह में— मोय (इमली की चटनी, 11/21/ 9 ) रसायन ( 15/14 / 10 ) एवं हरड़ (10/6 / 9), प्रधान पदार्थ हैं।
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(ग) जैन दर्शन, सिद्धान्त, आचार, योग, अध्यात्म एवं व्रत
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प०च० एक पौराणिक महाकाव्य है । उसमें कथा नायक के जीवन चरित का विश्लेषण ही कवि का प्रमुख उद्देश्य है, फिर भी उसने जैनदर्शन, सिद्धान्त, आचार, अध्यात्म एवं पुनर्जन्म की चर्चा के भी कुछ प्रसंग उपस्थित किये हैं। इन्यमें मुनि सात्यकि और विप्र-पुत्र अग्निभूत एवं मरुभूति के बीच द्वादशानुप्रेक्षाओं के साथ-साथ पाँच अणुव्रतों तीन गुणव्रतों एवं चार शिक्षाव्रतों की उपदेश - चर्चा (4 / 15-17, 5/1-8), मुनि अरिंजय द्वारा धर्माधर्म-चर्चा (5 / 13-14). मुनि त्रिगुप्ति ( 6/6 / 1 ) एवं मुनि शुभ द्वारा दीक्षा वर्णन (6/8/9 ), मुनि विमलवाहन (7/4) तथा मुनि उदधिदत्त द्वारा प्रद्युम्न और रूपिणी के भवान्तर वर्णन ( 9/4-15) एवं तीर्थंकर नेमिनाथ द्वारा तत्वचर्चा (15/11–20) आदि प्रमुख हैं।
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इन प्रसंगों में कवि की जैन दार्शनिक शब्दावलियों में सप्तभंगी (4/11/11), पदार्थ ( 15/11/12 ) | सैद्धान्तिक शब्दावलियों में सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय (5/14/4), जीवादि नवपदार्थ ( 15 / 11 / 12 ), षट् लेश्या (14/9/15), बन्ध एवं मोक्ष (14/9/14), मार्गणा (15/11/9 ), केवलज्ञान (15/13/ 2), परमेष्ठि (4/11/5), असंज्ञी (5/12/6), द्रव्य (15/17/10), तत्व ( 15/18/3), आचारात्मक शब्दावलियों में निर्ग्रन्थ (5/9/3), दशलक्षण धर्म (5 / 15 / 5), परीषह (7/6/2 ), समवृत्ति (7/5/4), पंचमहाव्रत ( 7/5/6), द्वादशानुप्रेक्षा (7/4/ 2), सल्लेखना (5/7/1 ), अष्टमूलगुण (5/10/3), क्षुल्लक (11/23/4), स्वाध्याय ( 7/5/8), गुप्तित्रय (7/5/7)। योग एवं अध्यात्म सम्बन्धी शब्दावलियों में - योग- निवृत्ति (14/2/7), शुक्लध्यान ( 15/11/7), प्रतिमायोग ( 15 / 10/15 ), ध्यान (7/5/8), नासाग्रदृष्टि (8/16/9) तथा व्रतों में नन्दीश्वर व्रत (8/16/9 ) एवं कवलचन्द्रायण व्रतों ( 9/11/5) के उल्लेख प्रमुख हैं।
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जैनेतर दर्शन एवं आचार तथा ग्रन्थों के उल्लेख
जैनेतर दार्शनिक एवं धार्मिक सम्प्रदायों में कवि ने मीमांसा (4/15/7), सांख्य (15/16/10), एवं कौलिक (15/16/6) सम्प्रदायों के उल्लेख किये हैं। जैनेतर आधार में पशुवध (6/1/10, 15/5/6), सन्ध्या-चरण ( 5 / 16 / 10 ) कुश-प्रयोग (5/16/10), यज्ञ (6/1/2) पंचाग्नितम ( 7/8/3), चतुर्वेद घोष ( 6/1/1 ) और वेदों में सामवेद (4/14/14, 4/16/8) तथा छन्द (5/12/3) एवं निघण्टु ( 11/17/8) जैसे जैनेतर शास्त्रों के नामोल्लेख किये हैं।