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________________ 110] महाक मिह विरइज पज्जण्याचार (10) सांस्कृतिक सामग्री (क) मनोरंजन-संगीत, उत्सव, क्रीड़ाएँ एवं गोष्ठियाँ जीवन-विकास के लिए मनोरंजन उतना ही आवश्यक है, जितना जीवित रहने के लिए अन्न-जल । मनोरंजन से जीवन की नीरसता को दूर किया जाता है तथा नवीन स्फूर्ति, प्रेरणा, उत्साह एवं नया जीवन प्राप्त किया जाता है। महाकवि सिंह ने प०च० में पात्रों एवं पाठकों की नीरसता को दूर करने के लिए ही मानों कुछ मनोरंजन सामग्री प्रस्तुत की है, जिसका वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है। (1) संगीत -..- गीत, नृत्य, नाटक एवं वाद्य कवि के कलात्मक विनोदों में जन्मोत्सव एवं विवाहोत्सवों के अवसरों पर विविध मंगलगीत (1/14/6, 3/13/1], 9/6/8, 13/15:10 14/5/6), सट्टक-नृत्य (15/3/10), मयूर-नृत्य (05/3/15), ताण्डव-नृत्य (14/20/10), तथा विविध वाद्य-वादनों के उल्लेख प्रधान है। उसने विभिन्न प्रसंगों में इन वाद्यों के उल्लेख किए हैं। जैसेपडह (1/11/10), पडुपडह (2/16/J), तूर (2/1/2), अडूर (2/1/2), तुरि (2/15/9), भेरी (2/16/1), डुक्क (11/23/10), ढक्क (6/10/1), करड (11/23/9), काहल (11/5/11), कंबु (13/16/10), कंसाल (11/23/9), ताल (13/16:11), मुअंग (मृदंग- 11/23/9) वणिताल (11/23/9), वीणा (11/23/9), एवं डक्क (13/16/12) | उक्त वाद्यों के प्रकार एवं संख्या देखकर उस समय के संगीत के उपकरणों की समृद्धि का अनुमान सहज रूप में लगाया जा सकता है। (2) क्रीड़ाएँ, उत्सव एवं गोष्ठियाँ ___ क्रीड़ाओं में जलक्रीड़ा (6/17/9), विमान-क्रीड़ा (1535/10), अश्वारोहण (14/18/11), एवं नाट्य-क्रीड़ा (15/3/10), कुक्कुट -क्रीड़ा (14/16/4-6), सारिपास द्वारा द्यूत-क्रीडा (14/15/10), सैन्य-प्रदर्शन-क्रीड़ा (14/15/10), एवं हिंदोला क्रीड़ा (-झूला 15/3/5) उत्सवों में- छट्ठी (3/13/1]), वसन्तोत्सव (6/16/12-17, 6/17), स्वयंवरोत्सव (6/17), युवराज-पदोत्सव (7/15/4, 13/17/15), नन्दीश्वर-व्रतोत्सव (15/5/9), पाणिग्रहणोत्सव (14/2-7), तथा गोष्ठियों में प्राकृत काव्य गोष्टी (15/3/16-17) के नाम प्रमुख हैं। (ख) भोजन-पान ___ भोजन-पान के द्वारा शरीर की पुष्टि के साथ-साथ मन एवं मस्तिष्क का संवर्धन भी होता है। भोजन पर ही हमारे विचार एवं क्रिया-कलाप निर्भर रहते हैं। भोजन के गुण- अवगुण के अनुरूप ही विचारों का भी निर्माण होता है। आहार की शुद्धता से मन शान्त एवं शुद्ध रहता है। भारतीय संस्कृति में भोजन-पान का महत्व वैदिक-काल से ही चला आ रहा है। तैत्तरीय-उपनिषद में तो उसे सौषधि कहा गया है। प०चल में भी भोजन-सामग्रियों का उल्लेख हुआ है। उसमें कहा गया है कि शास्त्रोक्त विधि के अनुसार पवित्र भोजन करना चाहिए। उसमें उपलब्ध भोजन-सामग्री का वर्गीकरण चार प्रकार से किया जा सकता है। (1) अशन, (2) स्वाद्य, (3) पान एवं (4) अवलेह। (1) अशन के अन्तर्गत वह खाद्य-सामग्री आती है, जो जीवित रहने के लिए आवश्यक है। इसमें गेहूँ, चना, चावल आदि से निर्मित भोजन आता है। इस प्रकार की खाद्य-सामग्री में केवल कूलु (भात 1/21:4), दाल 1. तत्सरग्ध उपनिषद् 2:21
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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