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________________ प्रस्तावना 1109 सिलाई की जाती थी। इनके अतिरिक्त अन्य दैनिक जीवन के उपयोग में आने वाले वस्त्रों की भी सिलाई की जाती थी। (3) शाक, तौह एवं अल-नि:-... सिरामें लाद्य-सामग्री तथा रथ (2/13/8), शिविका (2/14/3), कृषि के औजार, साँकल (1114/6), लोहे के बर्तन (11/21/1), कचउ (कवच 12/25:8), वक्खर (2/14/10) हल एवं युद्ध सम्बन्धी अनेक आवश्यक आयुध-वस्तुओं का निर्माण होता था। (च) चर्मोद्योग– मृगचर्म (11/7/9) के साथ-साथ अन्य धर्म-वस्तुएँ तैयार की जाती थीं। (छ) पशुपालन- समाज के कुछ लोग गाय, भैंस (117. 15/6/1) एवं अन्य जानवरों को पालते-पोसते थे तथा उनके व्यापार से एवं उनके घी, दूध एवं दही से अपनी आजीविका चलाते थे। (ज) भवन-निर्माण सम्बन्धी सामग्री का निर्माण— इसके अन्तर्गत भवन-निर्माण सम्बन्धी विविध सामग्रियों का निर्माण होता था। उसमें ईंट, रंग एवं चूना (हपंकय 15/3/14) आदि प्रमुख हैं। कवि सिंह ने चूने को छोड़कर अन्य सामग्रियों का उल्लेख नहीं किया है, किन्तु उसने विविध भवनों एव मन्दिरों के उन्लेख अवश्य किये हैं। चूँकि वे ईंटों द्वारा ही निर्मित होते थे, अतः ईंटों का निर्माण तथा साज-सज्जा के लिए चित्र-विचित्र रंगों का निर्माण अवश्य होता रहा होगा। (झ) प्रसाधन-लेप-सामग्री उद्योग– कवि सिंह ने प्रसंग वश प्रसाधन-सामग्रियों का भी उल्लेख किया है. इनमें धणसारु (कर्पूर, 2/11/10, 4/537), चंदणु (3/1/13), घुसिण (चन्दन, 3/13/7), गोसीरह (4/5/7), कुंकुम (6/171 9), मयणाहि (कस्तूरी, 4/10/6, 1/14/3), जाइफल (3/5/11), वंदई (सिन्दूर, 3/1/13), अंजन (3/2:10), दप्पण (दर्पण. 1/16/7) सोने-चांदी के स्तवक मिश्रित चन्दन के लेप (15/3/3) प्रमुख हैं। (4) खनिज पदार्थ राष्ट्र के आर्थिक विकास में खनिज-सम्पदा बहुत उपयोगी मानी गयी है। इसीलिए मानसोल्लास में उसे राज्य का एक प्रधान अंग माना गया है। प०च० में कवि ने अनेक प्रकार के खनिज-तत्त्वों की सूचना दी है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं- सोना (-कणय-1/10/5), विविध प्रकार के रत्न (4/10/5), पविमणि (हीरा-2/16 11). मरगयमणि (-मरकतमणि-2/10/8), लौह (11/2/1) एवं तंब (ताम्र-9/20/13)1 इनसे जन-जीवन में उपयोग आने वाली अनेक उपयोगी वस्तुओं का निर्माण होता था। इस कारण ये भी लोगों की आजीविका के मुख्य साधन थे। (5) क्रय-विक्रय के माध्यम प्राचीन काल में क्रय-विक्रय वस्तुओं के पारस्परिक विनिमय के माध्यम से किया जाता था, जिसे अंग्रेजी में बार्टर-सिस्टम कहा गया है। कवि ने प०० में इस माध्यम की कोई सूचना नहीं दी। उसके अनुसार वस्तुओं के क्रय-विक्रय का माध्यम दोणार (11:13/13) एवं सिक्के (10:18/9) थे। (6) राज्य-कर प०च० में सुक्क (10/10/4) एवं कर (4/14/11) के उल्लेख भी मिलते हैं। इससे विदित होता है कि राजागण अपने राज्य की शासन-व्यवस्था चलाने के लिए लोगों से विविध प्रकार के कार्यों एवं व्यापारों पर कर (टैक्स) वसूल किया करते थे। कवि ने इनके प्रकार अथवा दरों की चर्चा नहीं की। 1. मानसोल्लात्त अनुबर 201
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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