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________________ प्रस्तावना [107 मात्रा में प्रचलित हो गये थे। यूनान के सुप्रसिद्ध इतिहासकार "हेरोडोटस" ने लिखा है कि ई० पूर्व 5वीं सदी में फारस की सेना में भारतीयों का भी एक दल सम्मिलित था, जो धनुष-बाण चलाने में अत्यन्त कुशाल माना जाता था ।। कौटिल्य ने बाणों के साथ अन्य अनेक हथियारों के भी उल्लेख किये हैं। महाभारत, जो कि युद्ध-विद्या का एक महान् ऐतिहासिक ग्रन्थ-रत्ल है, उसमें भिन्दिपाल, शक्ति, तोपर, नालिका जैसे अनेक हथियारों के उल्लेख मिलते हैं। शस्त्रास्त्रों की यह परम्परा परवर्ती कालों में उत्तरोत्तर विकसित होती रही। कवि सिंह ने सम्भवत: पूर्व-साहित्यावलोकन तो किया ही, साथ ही उसे समकालीन प्रचलित युद्ध-सामग्री की भी जानकारी थी, क्योंकि पाचक में कवि ने प्राच्यकालीन युद्ध-सामग्री के साथ-साथ समकालीन अनेक शस्त्रास्त्रों के उल्लेख किये हैं । विविध बाणों, सिद्धियों एवं विद्याओं के प्रकार भी उसमें उल्लिखित हैं। इनकी वर्गीकृत सूची यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैचुभने वाले हथियार- सु! (2013), कुन्त 6:107), माला (6107), भाला (2/1719)। काटने वाले हथियार— खड्ग (4/17/7, 6:10/7, 8/5/8), रथाङ्गचक्र (2/1916), चक्र (1/12/9) चूर-चूर कर डालने वाले अथवा भयानक मार करने वाले हथियार-- शैल (2/17/12), सबल (2/17!10), शूल (2/17/10), मुद्गर (2/16/4), घन (6/10/8)। दूर से फेंके जाने वाले अस्त्र— मोहनास्त्र (13/12/2), दिव्यास्त्र (13/12/8), आग्नेयास्त्र (13/13/1), दारुणास्त्र (13/14/I), गिरिदु-अस्त्र (9/20/9), तमप्रसारास्त्र (9/20/11), नागपाश (2/20/7), हलप्रहरणास्त्र (2/7/12), प्रहरणास्त्र (13:12/1)। विविध प्रकार के बाण -- पंचाणणु-बाण (2/15/9), धोरणिबाण (2/18/7), कणियबाण (2/20/6), दिव्यधनुष (9/20:8), शुक्लबाणः (9/20/8), इक्षुकोवंड (11/377), भुसुंढि (9/13/2)। दैवी सिद्धियाँ विद्याएँ– प्रज्ञप्ति-विद्या (10/17/3), गृहकारिणी-विद्या (8/5/14), सैन्यकारिणी-विद्या (8/5/14), जयसारी-विद्या (8/14/6), इन्द्रजाल-दिद्या (8/14/7), आलोचनी विद्या (9/17/4) | शक्तियों— तीन बुद्धियाँ एवं तीन शक्तियाँ (6/8)। कवि ने इनके नामों के उल्लेख नहीं किये हैं। (9) आजीविका के साधन (1) कृषि एवं अन्य उत्पादन __ अनुकूल प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण कृषि-कर्म भारत के उत्पादन एवं धनार्जन का प्रमुख साधन रहा है। वैदिक काल से मध्यकाल तक प्राय: यही स्थिति देखने को मिलती है । पच० के अध्ययन से उसका पूर्ण समर्थन होता है। उसमें कृषि के उत्पादनों से विविध प्रकार की धान, दालें, तिलहन, ईख एवं विभिन्न फलों की चर्चा की गयी है। धान की कोटियों में कवि ने विशेष प्रकार से कमलशालि धान (1/7/4) का उल्लेख किया है। किन्तु आश्चर्य का विषय यह है कि उसने गेहूँ एवं चने जैसे प्रधान-खाद्य पदार्थों के उपज की चर्चा नहीं की। विश्लेषण करने पर इस तथ्य से हमारे उस अनुमान का समर्थन अवश्य होता है कि कवि दक्षिण भारत का कहीं का निवासी | भारत के प्रचीन शस्त्रास्त्र और पुद्ध काल राष्ट्रीय शैक्षिक असन्धान Telnev परिषद :914). Tई प्रशि, 1051
SR No.090322
Book TitlePajjunnchariu
Original Sutra AuthorSinh Mahakavi
AuthorVidyavati Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages512
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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