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प्रस्तावना
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बहुत छोटी इकाई थी। कवि सिंह ने सामन्तों का जिस ढंग से वर्णन किया है. उससे निम्न तथ्यों पर प्रकाश पडता है-. 1. सामन्तगण अपने अधिपति राजा के आज्ञापालक होते थे। 2. वे अपने राजाओं के इतने पराधीन रहते थे कि माँगे जाने पर अपनी रानियों भी उन्हें समर्पित करने को
बाध्य हो जाते थे। तथा 3. मनोनुकूल कार्य करने पर अधिपति राजा विशेष अवसरों पर वस्त्राभूषण प्रदान कर सम्मानित करते थे। (ख) राज्य के प्रमुख अंग
(1) मन्त्री—मानसोल्लास में राज्य के 7 अंगों में से अमात्य अथवा मन्त्री को प्रमुख स्थान दिया गया है। महाकवि विबुध श्रीधर (12वीं सदी) ने अमात्य को स्वर्गापवर्ग के नियमों को जानने वाला, स्पष्टवक्ता, नयनीति का ज्ञाता. वाग्मी, महामति", सद्गुणों की खानि', धर्मात्मा' सभी कार्यों में दक्ष, सक्षम एवं धीर। कहा है। कवि सिंह ने भी अमात्य के इन्हीं गुणों को प्रकाशित किया है।। पश्च० में उल्लिखित ऐसे अमात्यों अथवा मन्त्रियों में सुमति माभक मन्त्री (6/16/7) 'का नाम उल्लेखनीय है।
(2) सेनापति—कवि सिंह ने युद्ध प्रसंगों में सेनापति (6/9/7, 15/2/1) का नामोल्लेख किया है। क्योंकि उसमें उसका ही विशेष महत्व होता है। जय अथवा विजय उसी की कुशलता, चतुराई, दूरदर्शिता एवं मनोवैज्ञानिकता पर निर्भर करती है। अत: राजा किसी अनुभवी योद्धा को ही सेनापति नियुक्त करता था और सम्भवत: उसे अमात्य की श्रेणी का सम्मान दिया जाता था। युद्ध घोषणा के पूर्व राजा मन्त्रियों के साथ-साथ सेनापति से सलाह लेकर ही सुद्ध-घोषणा करता था। कवि ने सेनापतियों के नामों के उल्लेख नहीं किए, किन्तु युद्ध प्रसंगों में उसने सेनापतियों को पर्याप्त महत्त्व दिया है। 12
(3) तलवर राज्य में शान्ति एवं शासन-व्यवस्था बनाए रखने के लिए तलबर (वर्तमान कोतवाल) के पद को महत्त्वपूर्ण बताया गया है। वह राजा का विश्वासपात्र होता था। प०च० के उल्लेखों से ध्वनित होता है कि उसकी सलाह के अनुसार ही राजा किसी को दण्डित करने अथवा पुरस्कृत करने का अपना अन्तिम निर्णय करता था। प०च० के एक प्रसंग के अनुसार परदारा-गमन करने वाले एक व्यक्ति को पकड़कर जब तलवर उसे राजा के सम्मुख प्रस्तुत करता है, तब राजा उसे शूली पर लटका देने का सीधा आदेश दे देता है।
(4) दत्त-शासन-व्यवस्था के लिए राजा विविध प्रकार के दतों की नियक्ति करता था। ये दत अत्यन्त विश्वस्त, कर्त्तव्य-निष्ठ एवं कुशल होते थे। प्राचीन साहित्य में वर्णित दूतों की विशेषताओं का समाहार करना चाहें तो उन्हें निम्न प्रकार विभक्त किया जा सकता है। 1.व्यक्तिगत गुण–मनोहरता (सौजन्य), सुन्दरता (आकर्षक व्यक्तित्व), आतिथ्य भावना, निभाकता, वाक्पटुता,
शालीनता, तीव्र स्मरण शक्ति एवं प्रभावशाली वक्तृत्व शक्ति। 2. सन्धिवार्ता से सम्बद्ध गुण-कुशल सूझ-बूझ, शान्ति, धैर्य वृत्ति एवं प्रत्युत्पन्नमतित्व । 3.सुविज्ञता—विविध भाषाओं का ज्ञान और परिग्राहक राष्ट्र की प्रथाओं एवं परम्पराओं से परिचय आदि ।
| मान्सरलासा. अनुक्रम 201 2. उड्डाणचरित, 3076: 3. F JT!4 . 4. ही 18:51 5. वह:03.9121 6. वही . 7. वही। 34131 8. अही0. 312/1।। ५. वही८. 3:12001 10. वही.. 3:12/11। 11. T०चः, 12/13. 12. अहीर. 6971 13. दही०. 7:3:21 14. पहील, 7:3/61 15. देश राजनय के सिद्धान्त · डॉ गधी जी राम पट ना 1978). Ya50-81 |